[ १४ ] गया । १६६२ बगाले शाहशुजा भो फोज़ ले कर चढा किन्तु सुलैमा कोह ( दारा शिकोह के बेटे) से वनारम के पास लडाई हार कर फिर गाले चला गया। सुराद और औरंगजेब इधर यशवन्त सिंह को जी हुए आगरे से एक मजिन श्यामगढ में अा पर्नुचे । दारा एक लाख स लेकर इन रो युद्ध कने को निकला। राजा रामसिंह राजा रूपसिंह छत्रस आदि कई क्षत्रो राजे उस को सहायता को आए थे और वडी वीरता सारे गए। परमेशर को सुनसानों का राज्यस्थिर नहीं रखना था इस हाथो विचलने से दारा की फौज भाग गर्न और गौरगजे व ने आगरे प्रवेश करके विश्वासघातकता से सुराद को कैद कर के १६५८ में अपने वादशाह बनाया। अन्त में एक दिन सुराद को भी मरवा डाला और सु सांशिकोह को भी जो कश्लोर से पकड आया था। मरवा डाला । शुजा डा हार कर अाकान भागा और वहीं सबंश मारा गया दारा ने सिं को राह मे अजमेर पाकर बीम हजार मैना एकत्र करके औ गजे व चढ़ाई किया किन्तु युद्ध में हार गया और औरंगजेब ने बडी निर्दयता उस को मरवा डाला। उम के पुत्र मिपहशिकोह को ग्वालियर के किले कैद किया और फिर वहुत से शहजादा को जिन का वादशाहे से दूर भी मंबर या कटवा डान्ना । कहते है कि दाराशिकोह वादगाह होता। लोग यकबर को सो भन्न जाते। इम के पोछे गाइजन मात वरम जिया था यौरगजेब के राज्य के प्रारम्भ हो मे मुमल्लानी बादशाहत का वास्तवि हास समझना चाहिए। जिजिया का कर फिर से जारी हुआ । हिन्दुओं मेले और त्योहार बन्द किए। तीर्थ और देवमन्दिर ध्वंप्त कि गए। मी से 'तीन पुस्त को कमाई' स्वरूप हिन्दुनों की जो टिलो के वादशाहो से प्रोति घी वह नाश हो गई । इधर दक्षिण में महाराष्ट्रों का उदय हुपा शिवाजी नामक एक वीर पुरुप ने जो यादवराव का नाती और मालूजो का,पुत्र था दक्षिण में अपनी खतंत्रता का डंका बजाया। पहले विजयपुर के राज में लूटपाट करके अपनी मामर्थ्य वढा कर १६६२ में बादशाही देशों को लूटना आरम्भ किया। बादशाहो सेनाध्यक्ष शास्ताखां ने इन के विरुद्ध प्राकर पने में अपना अधिकार कर लिया । किन्तु असमसाहसी शिवानो केवल पचीम मनुष्ण साथ ले कर एक रात उम के डेरे में घुस गए और शाइ- खा निनारे गाण लेकर मार्ग। शिवाजी ने अब को पून से लेकर, गुजरात
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