१५ ] तक अपना प्रताप ब-या अोर तजौर और मन्दराज जीत कर १६६४ अपने को राजा प्रमिद्द किया। औरंगजेब शिवाजी के इम माहम से बहुत ही खिमिया गया और जयमिन के माय वहत मी मैना उमे जीतने को भेजी। राजा जयसिंह और शिवाजी से सन्धि हो गई और उम से मरहठे दक्षिण में वादशानी मानगुजारी को चौथ लेने लगे । १६६५ में शिवाजी दिल्ली आए और औरंगजेब ने जब उन को नजावन्द कर लिया तो कुछ दिन पोछे वंडो मावधानी मे वह दिल्ली से निकल गए। १६६७ में औरंगजेब ने f वाजी को गजा की पदवी भेज दी और वीनापुर और गोन्नकुंडी के वा- दशाहों मे लडने को इन को कहना भेजा। शिवाजी इन दोनों वादशाहों मे लडे और अन्त जब मन्धि हुई तो अपने राज्य का शिवाजी ने सुप्रबन्ध विय।। १६६८ में शिवाजी का प्रभुत्व दक्षिण में स्थिर हो गया था, इस से औरंगजेब ने क्रोध करके महाबतखां को बडी मैना के साथ उन को दमन करने को भेजा किन्तु ( १६७० ) शिवाजी ने उन को परास्त कर दिया। (इसी समय मत्तनामी और सिख नामक दो दन हिन्दुओं के और औरंगजे व विरुद्ध खड़े हुए। १६७८ में जोधपुर के राजा यशवन्त सिंह के सिन्धुपार मारे जाने परं वनं की स्त्री और पुत्र को निरपराध औरगजेब ने कैद करना चाहा। यद्यपि दुर्गादाम नामक सैनापति को शूरता से लडके तो कैद नहीं हुए किन्तु वादशाह की इस वेईमानी से राजपुतानामात्र विरुद्ध हो गया। उदयपुर के गणा राजमिह जयपुर के रामसिंह और सभी राजाओं ने वाट- शाह के विरुद्ध शस्त्रधारण किया। इधर टुर्गादास ने औरंगजेब के लडके अकबर को वंहका कर बागी कर दिया और सत्तर हजार सैना लेकर अज- मेर में बादशाही सेना मे बडा युद्ध किया । १६८० में विरार खानदेश वि. लोर मैसूर आदि देश में अपना अधिकार यश और प्रताप विस्तार करके शिवाजी मर गए । शिवाजी का पुत्र शंभु जी राजा हुआ और वादशाह के पुत्र मुअज्जम को जीत कर बहुत देश लूटा किन्तु एक युन में बादशाही सैना से घिर कर पकड गया और औरंगजेब ने उम को मरवा डाला। इधर वीस वरम के रगडे झगड के पीछे गोलकंडा और वीजापुर भी औरंगजेब ने जीत लिया। यद्यपि इस जीत से औरंगजेब को गर्व बढ़ गया किन्तु साथ हो उस का आयुष्य और प्रताप घट गया। दक्षिण की लडाई के मारे खज़ाना खान्ती हो गया। हिन्दुओं का जी अति खट्टा हो गया । अन्त में
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