पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ १६ ] है। जो प्रथा पुरणानुमास से इस प्रकार से प्रतिपाखित होती चली जाती है उस का सून्न किस प्रकार से उत्पन्न हुआ था यह अनुसन्धान वारजे शशात हनि ले अन्तःकारण कौसा विपुल आनंद रख ले भाञ्जत हो जाता है। सिबार के राज्याभिषेक को समुदय प्राचीन नियस रक्षा करने में पिपुल प्रार्थ का व्यय होता है इसी कारण उल का पानेका जंग परित्या हो गया है। राणा जगतसिंहके पश्चात् और सिखो का अभिषेक पूर्ववत् समारोह के साथ सम्पन्न नहीं हुआ। उन के अभिषेक में नब्बे लक्ष रुपया व्यय हुशाया। बार को अति सच्च समय में समग्र भारतवर्ष का भाव ८० खमा रुपवा या। नगेन्द्र नगर से बाप्पा के जाने का कारण पहिरी पर्णित इजा है, वह सं- पर्ग संगत है, परंतु मह कविगण के अन्य से उन के प्रखान या अन्य प्रकार वा बिवरण दृष्ट होता है उन लोगों ने काविजन सुलभ कल्पना प्रभाव ले हैन घटना का भारोप कर के उसकी विलक्षण शोभा सम्पादन किया है। काल्प- निक बिवरण से अलंकृत न हो ऐसा संध्वान्त वंश भारतवर्ष में जतीव दुर्लक्ष है सुतरां हम लो अगण वर्णित बाप्पा के सौभाग्य सञ्चार का बिबरण निज में प्रकटित करते हैं:- पहिले कह जाए कि बाप्पा वामगा गा वा गोचारमा भारती* इन को पालित एक गऊ के स्तन में ब्राह्मण गण ने उपयुपरि विय दिवस तक दुग्ध नहीं पाया इससे सन्देह किया कि बाप्पा इस गऊ को दोहन करके दुन्ध पान कार लेते हैं। बाप्या इस अपवाद से प्रति अध हुए विन्तु गज को स्तन में खरूपतः दुग्ध न देख कर व्राह्मण गरा वो संदेह को अमूलक न कह लो। पश्चात् खयं अनुसन्धान कारके देखा कि यह गज प्रत्यह एका पर्वत गुहा में जाया करती थी और वहां से प्रत्यागमन करने से उसके स्तन पय:शून हो जाते हैं। बाप्पा ने गज का अनुसरण कार ने एक दिन गुहा में प्रवेश किया, और देखा कि उस बेतमवन में एक योगी ध्यानवख्या में उपविष्ट है। उनके सन्मुख से एक शिव लिंग है और उसी शिव लिंग के मस्तक पर परिजनो का धवल पयोधर प्रचुर परिमाण से परिवर्णित होता है। ___ पूर्वकाल के योगी आणिमा सिन्न यह प्राक्षतिक सौर पविल देवधती इति पूर्व में और किसी के दृष्टिगोचर नहीं हुई थी। बाप्पा ने जिन योगी का

  • सूर्यवंशियों में ब्राहाण की गोचारण वारना माचीन प्रथा है. रघुवंश में

दिलीप वा इतिहास देखो।