पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१५४

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भयान प्रकला दर्शन किया था उनका नाम हारीत , जन समागम से जोगी का ध्यान भंग हुआ, बाप्पा का परिचय जिज्ञासा करने से बाप्या ने बाल हत्तान्त जहां तक शवगत धे सब निवेदन किया । योगी को आशीर्वाद ग्रहणान्तर उस दिन स्टह में प्रत्यागत भए । अतः पर बाप्या प्रत्य ह एक बार 'योगी के निकट गमन करके उन का पाद प्रक्षालन, पानार्थ पयः प्रदान और शिव प्रीति काम होकार धतुरा.अर्क प्रभुति शिव-प्रिय वन पुष्प समूह चयन किया कारते । सेवा से तुष्ट होकर योगी बर ने उन को ग्रास क्रम से नीति शास्त्र में शिक्षित और शैव सन्त्र से दीक्षित किया और ख कर से उनके कण्ठ से पवित्न यज्ञसूत्र समर्पण पूर्वक “ एक लिङ्ग को देवान” यह उपाधि प्रदान विाया।

तत्पश्चात् वाप्पा का यह वाम था कि निता पुति योगी का दर्शन करना प्रौर तत्कथित संत्र का अनुष्ठान करना. काल पा कर भगवती पार्वती ने संवद्रभाव से वाप्पा को दर्शन दिया और राज्यादिक के वरप्रदान पूर्वक दिव्य शस्त्र से बाप्या को सुमजित किया।कियत् कालानन्तर ध्यान से योगी ने अपने परमधाम जाने का समय निकट जान कर बापा को तवृत्तान्त विदित कर बोले “ कल तुम अति प्रत्यूप में उपस्थित होना ?" बाप्पा निद्रा के वशीभूत होकर प्रादेशानु रूप प्रताप में उपस्थित हो नहीं सकी और बिलम्ब करके जब वहां गए तो देखा कि हारीत ने आकाश-पथ में कियद दूर तक पारोहण किया है । उनका विद्युत निस विमान उज्ज्वद्वांग अप्सरागण बहन करती है। हारोत ने विमान गति स्थपति करके बाप्पा को निकटस्थ होने का आदेश किया । उस विमान तक पहुंचने के उद्यस से बाप्पा का कलेवर दत्क्षणात् २० हाथ दीर्घ होगया। किंतु तथापि उनकी गुरुदेव का रथ प्राप्त नहीं हुआ। तब योगी ने उनको सुख ब्यादान करने को कहा। तदनुसार बाप्पा ने बदन व्यादित किया। कथित है योगीबर ने उनके सुख विबर में उगाल परितमाग


हारीत को वंशीय ब्राह्मण लोग अद्यावधि एक लिङ्ग के पूजक पद में प्रतिष्ठित हैं। टाड् साहब वो समकालीन पुरोहित हारीत से षष्टाधिक षष्ठितम पुरुष थे उनके निकट में राणा के मध्य वर्तिता से शिवपुराण प्राप्त होकर टाड साहब ने इंग्लण्ड के रायल एसियाटिक सोसाइटी (Royal Asiatic Society ) समाज को प्रदान किया था।