पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१५५

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- [ १८ ] किया था । वापपा ने उंच से घृणा कर के इस जोहोवन का पतल में नि- क्षेप लिया और इसी अपराध से उनको शामरललाज नहीं हुशा । दोवल उ-. नना शरीर ले पोदा होगया। चारीत अट्टल हुए । बाणा ने इस प्रकार सदेवानुष्टहीत होकर और अपने को चितौर को मौरी राजवंश का दौहित्र जानकर और चालण्य में कालक्षेप करना युति संवतं अनुमान नहीं किया । अब गोचारण से उनको मतान्त घणा हुई और उन्होंने कतिपय सह- चर समभिव्यवहार में से कर परखवास परितयाग करके लोकालय में गमन. किया । मार्ग में जाहर-मगरा नामक पळत में विख्यात 'गोरखनाथ' बटव के साथ उनका साचाल हुया था । गोरक्ष ने उनको और विधाद तीक्षा काच- वान प्रदान किया था। मंगपूत सर को चलाने से उस तीक्षा हापाण के आघात से पचत भी विदीर्ण हो जाता था । बाप्पा ने उसी के प्रताप से चि- तौर का सिंहासन प्राह किया था। अट्ट शानिग के अन्य में बाप्पा को नागेन्द्र नगर से पुरखान का वह बिबरण प्राश होता है। और इस विवरण में शिवार निवासी लोगों का प्रगाढ़ विश्वास भी है ॥ मान्जव के जत पूर्व शधिपति पुमार बंशीय ततकाश में भारत बर्ष के शाब भीम थे । इस बंश की एका शाखा का नाम मोरी । मोरी बंणियों का इस समय में वितोर पर अधिकार या वियु चितोर तत्काल में प्रधान राज- घाट था या नयीं वह निश्चित नहीं । निजिक्ष अट्टालिका और दुर्ग प्रकृति में इस बंश को राजल वाल की छोदित लिपि विद्यमान हैं, उससे ज्ञात होता है कि मोरो राजा गए उस समय में विलक्षण पराजाज शाली थे॥ बाबा जब चितोर में उपखित हुए तात्काल में सोरी बंशीय मान राजा

  • कथित है मुसलमान धाम पचारका महाद ने जीय प्रिय दीहिच इ-

शन को बदन में ऐशाही निछीवन परित्याग लिया था क्या आश्चर्य है जो सुसल्मान खोगों ने यह कया आरतवर्ष की इसी उपाख्यान से ली है। ___नवार को राजधानी उदयपुर के पूर्व भाग में प्रवेश करने को रास्ते में कोस को अन्दर जाहरनगरा पर्चत अवस्थित है। पच पर्वत में राजा और सतपारिपद वर्ग गया काय ज उपवेशग करते थे। उनलोगों को बैठने को एखान सब अद्यापि संस्मत और जीर्ण शंवला में पतित हैं। ____ वाषित है वह करवाय अबावधि विद्यमान हैं । राणा प्रति वत्सर में निपपित दिवरा में उसकी पूजा करते हैं। .