[ १८ ] सिंहासनारूढ़ थे। चितोर के राजवंश के साथ उनका सम्बन्ध था ५सुतरां बि- शेष समादर से राजा ने उनको सामन्त पद में अभिषिक्त करके तदुचित भूमि हत्ति प्रदान किया । चितोर के सरदार गण सैनिक नियम भोग करते घे ।। वे लोग ससुचित सम्मानभाव से इति पूर्व में मान राजा के ऊपर विरता हो रहे थे। एक आगन्तुक बाप्पा के ऊपर उनके समधिक अनुराग सन्दर्शन से वे लोग गौर भी सातीशय ईर्षान्वित हुए । इसी समय में चितौर राजबिदेशीय शत्नु कटक आक्रान्त होने से पर्दार, लोग युद्धार्थ प्राइत हुए परन्तु उन स्तोगों ने युद्धोद्योग नहीं किया। अधिकन्तु सैनिक नियमानुसार भुक्त भूमि का पट्टा प्रभृति दूर निक्षेप करके साहङ्कार बाक्य बोले कि राजा अपने प्रियतर सरदार को युद्धार्थ नियोग करें। वाप्या ने यह सुन कर उपस्थित युद्ध का आर ग्रहण कर के चित्तोर से याना किया। सरदार गण यद्यपि भूमि-वृत्ति-बञ्चित हुए थे तथापि लज्जा- यशत: बाप्पा के अनुगामी हुए। समर में विपक्ष गण ने पराजित हो कर पलायन किया। बाप्पा ने सरदार गण के साथ चितोर में प्रत्यागत न होकर खोय पैत्रिक राजधानी गाजनी नगरमें गमन किया । सलीम नामक जनैक असभ्य उस काल में गाजनी के सिंहासन पर था। बाप्पा ने सलीम को दूरी- भूत कर के वहां का सिंहासन जनैक चौर वंशीय राजपूत को दिया और पाप पूर्वोता असन्तुष्ट सरदार गण के साथ चितोर प्रत्यागमन किया। कथित है कि बाप्पा ने इस समय सलीम की कन्या का पाणिग्रहण किया था।
- बाप्पा को माता प्रमारा वंशीया थी। मुतरां वर्तमान प्रमारा के
सहित मामा भागिनेय का सम्बन्ध था। सैनिक नियम ( Feudal System ) इस नियमानुसार से मुक्त भूमि पो कर के परिवर्त्त में प्रत्येक सरदार को अपने अपने वत्ति भूमि के परिमा- ग्णानुरूप नियमित संख्या की सेना लेकार विग्रह समय में विपक्ष के साथ सं- श्राम करना होता है। प्राचीनकाल में वृहत् वृहत् राज्य भूमि संक्रान्त यह नियम प्रचलित था। राजा और सरदारगण के मध्य और सरदार और तद- धीन साधारण पूजावर्ग के मध्य पर्वोक्त मूल नियम के आनुषंगिक अन्यान्च नियम ससुदय पृथक पृश्यक रूप से व्यवस्थित करते थे। राजस्थान के सैनिक नियम का विवरण इतः पर पृथक एक खण्ड में सविस्तर से पकटित होगा।