पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१७७

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[१ ] चार दिवान्ती का है परंतु यह लेख सन् ईसवी दो सौ बरस पहले का नहीं हो सकता। यह गुप्ताचर में पुराचीन रोति से लिखा है- दीपढंका कता येषां दान x x मशमनिनाचार्य। अशोक के चार दिवाली के सुंडेरे के पत्थर पर निचली भोर निम्न लि. खित लेख लिखा है। यह दो लाइन ( पंक्ति ) में है ओर प्रते पक लाइन ६ फिट लंबा है। । कारितो यन्लवज्रासन वृहद्गह्मकुटी प्रं मादमई त्रिकोट्यां भश्मतैर्मधुलेपकस्यपुन लटिकः गिक रेदगतुट मादन्या तारकं भगवते बुद्धाय x x रदानेन कृतप्रदीपः ४ रारिध दिए प्रती समधने रदनी मायां च प्रदहं वृतप्रदीपैः गुणे शतदानेनापरण कारितः विहारपि भगवते येत्यपद्ध २। हपटां पाक्षय नः धिकरी धमशत तं दं वं ग प्रदेष च च नं पं x x x x प - मनोनू माधुरं लातीतं तदस सव्व चा प्रहतत ४ क्षनुमत्पादितं तदेतत् सब यन्मया बुद्धौ प्रचेतमभारत मेजर ( Major Mend ) ने बोध गया के बड़े मंदिर को एक कोठरी से एक मूर्ती निकाली थी उस के पांव के समीप निम्न निखित लिपि थी- इदम तितरचित्रं सबसत्वानुकम्यिने । अवनवरसदारजितमाराय पतये ॥ सु (शु) छात्मा कारयामास बीधिमार्गरतोयतिः । बोधि घे (से) गयो (नी) तिबिख्याती दत्तगल्लनिवासकः ॥ भवबन्धविमु पर्थं पित्रोवन्धुजनस्य च । तथोपाध्यायपूर्वाणामाहवाग्रनिवासिनां ।। लौ ।।