[ ११ ] ज० ग्रोट साहिव ( A. Grote Esqr.) प्रेसिडेन्ट बंगाल एशियाटिक सोसा इटी ने निम्न लिखित लिपि, जो एक सांढ ( नंदी) की मूर्ति के पीठ पर लिखी हुई है, एशियाटिक सोसाइटी में सेज दी थी। यह लेख कुटिलाक्षर ( Kutila. Character ) में लिखा हुआ है। भीमकउन्ला के पुत्र श्री सुफंदी भट्टारक ने यह मूर्ति संवत् ७८१ में संतति के लिये चढायो थो। ए मस्व ७८१ वैशाख वदि ६ वरूध्य ग्रासव x x x त्तम भिमक उल्लासुते श्री सुफन्दिअट्टारक ग (?) अ (?) त्त मतया x x मनापल्य हेतोः वृषभट्टारकप्रतिष्ठितेति । जनरल कनिंगहम ( General Cunningham ] ने वोध गया के मंदिर के फाटक के चर के नोचे एक पत्थर देखा था जिस पर निम्न लिखित लिपि खुदी हुई है। यह लेख २. लाइन में है और कुटिलाक्षर में लिखा हुआ है। (१) नमोबुद्धाय ॥ आसीद्दतनरेन्द्रवेन्दविजयी श्रीराष्ट. कटान्वय! श्रीमान्नन्द इति त्रिलोवाविदितस्तेनखिनामग्रगणी: सत्येन प्रयतेन शौच विधिना श्लाघ्य न विख्यापित त्यागैः कल्प मह रूहः प्रण यिषु प्राज्ञो नरेन्द्रात्मजः । (२) यो मत्तमातङ्गमभिद्रवन्तन्नरेन्द्रवीथ्यांऽतुरगेन्द्रगामी । कशाभिघातेन विजित्य वीर: प्रख्यातवान्हस्तितलप्रहारः ॥ (३) दुर्ग दुर्जयमूर्जितक्षितिभुजामत्युत्तमै विक्रमः श्रीमहाम कृपाण पुण्यविभवैरुच्चैर्विजिग्ये च यः । येनाद्यापि नरेन्द्रखं- सदि मदा सम्भूतरोमोद्गमैच जमणिपूरटुगंधवल: संवर्ण्यते सूरिभिः॥ __(४) यः शौर्या तशयादनल्पसदृशात्ख्याती महोद्रकः (१) सन्मार्गेण गुणावलोक इति च श्लाघ्यामभिख्यान्दधौ । गेयैर्व- धगुणायैरभिनवखात्तचि शोषोद्गतैर्यश्चान्ते तनुसुत्ससर्ज विधिवद्योगीव तीर्थाश्रयः ॥
पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१७८
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