[ २८ ] करता है। अब जो सांप्रत घाट वर्तमान है वह अहल्यावाई का वनवाया हुपा है और दो बड़े बड़े शिवालय भी घाट की सीमा पर उन्हीं के बना- ए हैं और उन पर ये श्लोक लिखे हैं। श्रीमान् होलक्रोपाख्यख्यातो राजन्यदर्पहा । मल्लारिरावनामाऽभूत् खंडेरावस्तु तत्सुतः ॥ १॥ विलासी गुणकल्पद्रुः शूरो वीराभिसग्मतः । तत्पत्नी पुण्यचरिता कुलद्वयाविभूषणं ॥२॥ अहल्याख्या तया ख्याता तृषु लोकेपु कीर्तये । वद्धोघट्टस्सुसोपानो मणिकर्ष्यास्सुविस्तृतः ॥३ ॥ तत्पाश्वयोर्विधाये मौ प्रासादावुन्नतौ पृथक् ।। तयोः पश्चिमदिकसंस्थे स्थापितो गौतमेश्वरः ॥ ४ ॥ प्राक् संस्थे तारकेशांक अहल्योद्वारकेश्वरः ।। स्थापितो वसुवेदैह विधुसम्मतवैक्रमे ॥ ५ ॥ रामेन्दूदधि भयुक्ते शालिवाहनजेशके । राधशुक्लद्वितीयायां गुरौ दुंदुभिवत्सरे ॥६॥ घट्टोत्सर्गः सुसम्पन्नः यजमान्यभ्यनुज्ञयया। खामिकार्यहितैकेच्छु जीवाजीशर्म हस्ततः ॥ ७ ॥ ( शाके १७१३) काशी में विन्दुमाधव घाट सम्बत १७८२ में श्री छत्रपति महाराज के पन्त प्रतिनिधि परशुराम के पुत्र श्री श्री निवास की स्त्री श्रीमती राधाबाई ने बनवाया है और ऐसा अनुमान होता है जब यह घाट नहीं बना था तभी से इस का नाम नरसिंह दाढ़ा था क्योंकि नरसिंह दाढ़े का नाम उस श्लोक में पड़ा है जो वाई साहब के काल का बना है। निश्चय है कि नरसिंह दादा के नाम से लोग सोचेंगे कि यह कौन वस्तु है परन्तु मैं इतना ही कह सक- ता हूं कि वह नरसिंह दाढ़ा एक पत्थल का केवल मुख का आकार है जो रामानन्द की मढ़ी में हनुमान जी की बांई ओर दीवार में लगा है और जब वहां तक पानी चढ़ता है तव इन्द्रदमन का नहान लगता है ऐसा अनु- मान होता है कि यह इसी नाप के हेतु बनाया हो वा यह किसी पुरानी
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