पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१९६

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[ २८ ] मूर्ति का मुंह है जो नरसिंह जी के मुंह के नाम से पुजता है पर कोई कहते है कि वह रामानन्द गोसाई का मुंह है जो हो मुंह तो गोल पुराना मुछ- मुंडा सा है। ___यही नोक वहां खुदा है। खस्तिश्रीविक्रमार्केहिवननगधरासंमिते-१७६२ क्रोधनाद्दे । मासौष शुक्ल दितिथिहरिभयुतेचन्हिविश्वेशतुष्ट्यै ॥ श्रौशाहो: श्रीनिवासः प्रतिनिधिपदगः पशुरामात्मजस्त । ज्जायाराधाकृतीयं नयतिनृहरिदंष्ट्राख्यघट्टः सुवद्धः ॥ १ ॥ प्रत्य तरमिदं अर्ध्व श्लोकस्यदारिदीपवत् । अकारिवालकृष्ण न खामिकार्यनिरूपकं ॥ २ ॥ तथा काशी में जो वृद्धकाल महादेव का मन्दिर है वह भी किसी कत्र- पति के आश्रित में मेघश्याम के पुत्र चाविक उपनामक देवराज'ने बनाया है र एक तो कालेखर के लिंग का जीर्णोद्धार किया और अपने नाम देवराजेश्वर एक शिव और बैठाया है जो इस शोकों से प्रगट है। अब्दत्वीश्वरसंचक शुभदिने संस्थाप्य कालेश्वरं । प्राचीनं प्रण तार्तिभंजनपरं श्रौदेवराजेश्वरं ॥ शाहूछत्रपतेः कृपालुवशगः श्रीदेवरोयः खयं । मेघश्यामसुतः शिवालयमही काश्यामवनात्ध्रुव ॥१॥ श्रीमत्प्रौढप्रतापप्रकटितयशसः शाहुपालकस्य । प्रातस्याज्ञानुकारिदिनहितविहितश्चाविकोदेवरायः । धात्रन्देमोरभट्टोनुमितमुपवनं गेहशाला विशालं । काश्यांविश्व श्वरस्यविजगदधनुषःप्रौतयैर्निमाय ॥ २ ॥ पापभक्षेवर भैरव का मन्दिर भी बाजीराव का बनाया है जो हो अन काशी में जितने मन्दिर वा घाट हैं उन में ष धे से विशेष इन महारष्ट्रों के बनाए हुए हैं।