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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१९७

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[ ३. । शिवपुर का द्रौपदीकुण्ड । यह बात प्रसिद्ध है कि शिवपुर काशी को पंचकोशी में कोई तीर्थ नही केवल लोगों के वहां टिकते २ वह टिकान होगई है और देवता विठा दिये गये हैं पर अबको द्रौपदी कुण्ड में एक पत्थर के देखने से ज्ञात हुआ कि यह प्राचीन तीर्थ है और तीन सौ वरस'पहिले भी यहां पाण्डवों का मन्दिर था। वरंच “सुक्कति कति हितैषी, पद जो उस में राजा टोडरमल का विशेषण दिया है उससे ज्ञात होता है कि उन्हों ने भी किसी के बनाये हुए कुण्ड का जीर्णोद्धार किया है इससे उसकी और भी प्राचीनता सिद्ध होती है। यह वा वली राजा टोडरमल ने सं० १६४६ में बनवाई थी और "पांडव मंडपे" इस पद से स्पष्ट है कि वहां उस काल में पांडवों का मन्दिर था। इस का पहि- ला लोक-नहीं पढ़ा गयो बाकी के तीन लोक पाठकों के विनोदार्थ यहां प्रकाशित होते हैं । प्रत्यर्थिक्षितिपालकालनसु*****ने दूतिका । मुद्राक्ष पकटप्रतापतपनप्रोद्भासिताशामुखे ॥ १॥ क्षोणौशेकवर प्रशासति महौं तस्मिन् नृपालावलि- स्फूर्जन्मौजिमरीचिवीचिरुचिरोदञ्चत्पादाम्भोरुहे ॥ २ ॥ तद्राज्यै कधुरन्धरस्य वसुधा सामाज्यदीक्षागुरोः। श्रीमण्डनवंशमण्डनमणः श्रोटोडरमापतेः । धौंधेकविधौ समाहितमतेरादेशतोऽचीकर- हापौं पाण्डवमण्डपेश्वनी गोविन्ददासः सुधीः ॥ ३ ॥ ऋतुनिगमरसालासस्मिते १६४६ वत्सरेश सुकृतिकृतिहितेषी टोडरक्षोशिपालः । विहितविविधपूर्तोऽचीकरचारु वापीम् विमलस लिखसारां बदसोपानपंक्तिम् ॥ ४ ॥ m