[ २१ ] गोष्ठीपुर में गोहापूर्णचार्य मे तत्व पूछने की इच्छा से गए और यद्यपि प- हिले उनहों ने बहुत आनाकानी की पर अन्त में मब रहस्य खामी को उ- पदेश किया किन्तु यह कह दिया था कि यह किसी को बतलाना मत । खामी रामानुज मंत्रों का रहस्य पाकार ऐसे परितुष्ट हुए कि अनेक लोगों से उन्हों ने दयापूर्वक वह रहस्य कहे। जव गोष्ठीपूर्णचार्य को यह बात सालस हुई तब उन्हों ने खामी से बुलाकर पूछा जो गुरु की आज्ञा उमधन करै उस को क्या गति होती है 'खामी ने उत्तर दिया 'नर्क' तब गुरु ने पूछा कि फिर तुम ने हमारी आज्ञा उन्नघन करके रहस्य क्यों लोगों से कहा। इस पर स्वामी ने अपने दयापरवस उदार स्वभाव से निर्भय हो कर उत्ता दिया। "पतिष्ये एक एगह नरके गुरु पातकात् । सर्वे गच्छतु भवतां कृपया परमं पदम् ॥” अर्थत् आप की प्राजा टालने से मैं एक नरक में पडूं किन्तु और लोग जिनसे हमने रहस्य का उपदेश किया है वे आप की दयासे परमपद पावै॥ गुरु उन के इस उदार वाक्य से ऐसे प्रसन्न हुए कि "मवा" अर्थात् हमारे भी खामी, उनका नाम रक्खा और वरदान दिया कि आज से यह वैष्णव सिद्धान्त रामानुजसिद्धान्त से प्रचलित होगा और संसार में तुम प्रा. चार्य रूप से प्रसिद्ध होगे। कुछ कालपीछे खामी के भांजे दाशरथि खामी को आग्या से पूर्णाचार्य की बेटी के ससुराल में उसका काम काज सम्हालने को रहने लगे। वहां एक वैष्णव सुतियों का कुछ विरुद्ध अर्थ करता था उससे शास्त्रार्थ कर के उस को उन्होंने खामो के पास दीक्षित होने को भेज दिया और वह वैष्णवदास नाम पाकर इस मत का एक मुख पंडित हुआ। इस संप्रदाय में मालाधार नामक एक बड़े पंडित थे। शठकोपाचार्य छात सहसगीति का खामी ने उन से व्याख्यान सुना। ऐसेही अनेक वयोवद और जानवद्धों मे खमत का अनेक सिद्धान्त खामी ने लिया। वरंच अपने पुत्र मुन्दरवाडु की मागाधर ही मे दीक्षित कराया। रंग जी ठाकुर का आभूषण एक वेर चोर लोग चुरा ले गए थे और उन लोगों को इस दोष से कारागार हुआ था। वे चोर स्वामी से बड़ा हेष
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