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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२३७

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[ २२ ] रखरी घे इमसे उन लोगों ने स्वामी के अंग सेवकों को घूस देकर इनके भो- जन में विष मिला दिया। किन्तु परमेखर ने यह सब वृत्त अनुभव हारा खामी को बतला दिया इससे इनकी रक्षा हुई । ___ यजमूर्ति नामक एक वेदान्त का वडा भारी सन्यासी पण्डित था । वह ििग्वजय करता हुआ-रंगनगर में खामी से शास्त्रार्थ करने पाया । खामीने अठारह दिन पर्यन्त उससे शास्त्रार्थ कर के उसको परास्त किया और उस से प्राचिश्चित्त करा के उम को फिर से शिखा सूत्र धारण कराया। देवरा- ज देवमन्नाथ और मन्नाथ यह तीन नाम उस पण्डित के रक्खे गए पौर वह एक बड़े मठ का खामी नियत हुआ। इस पण्डित ने ज्ञानसार और प्रमेयसार नामक द्राविड़ भाषा में वैष्णवमत के दो बडे सुन्दर गन्य बनाए हैं। ___एक समय पुण्यनगर से अनन्ताचार्य बहुत से वैष्णवों के साथ खामी के दर्शन को प्राए । स्वामी ने उन को वैकराटगिरि की सेवा का अधिकार दिया। तव वे वैकुठगिरी गए और वहां वृन्दावन बना कर रहने लगे। इन्ही ने व्यंकटनाथ स्वामी का "रामानुज" लक्ष्मण इत्यादि नाम रक्खा है। ___ खामी इसके पश्चात देशाटन करने को निकले और व्यंकटगिरि होते हुए उत्तर की याचा को चले। मार्ग में दिल्ली में त्रिविक्रमाचर्य से भेंट किया। वहां से बदरीनाथादि होते हुए लौटकर अष्ट सहस्र गांव में पाए । वहां वरदाचार्य और यज्ञेश नामक अपने दो शिष्यों को मठाधिपति नियुक्त किया। वहां हस्तिगिरि आए और पूर्णाचार्यादि से मिलकर कापिल तीर्थ को गए। वहां कुछ दिन तक रहे और देश के राजा विट्ठलदेव को शिष्य किया। इस राजा विठ्ठल देव ने तोंडीर मंडलादिक अनेक गांव खामी को भेंट किए। वहां से वृषाचलादि स्थानों में अपना महात्म प्रकाश करते हुए रंगनगर खासी लौट आए। __खामी के मामा के पुत्र गोविन्द पण्डित को विराग में ऐसी कचि हु कि स्वामी ने बहुत कहा परंतु न्हों ने गृहस्थाश्रम स्वीकार नहीं किया । तव खाभी में उनको सन्यास दिया। ___एक वेर केवल कूरेश को साथ लेकर खामो शारदापीठ गए क्यै कि वहां वशिष्ठादेत * मत का मल अन्य बौधायन कत ब्रह्मसूत्र वृत्ति की पुस्तक थी।

  • दो० । कहिं एक अद्दतमत, दुतिय दैत मत जान ।