पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/३५०

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अपने राजा के वर्तमान रहने ही में अपना नित्य मंगल समझकर सिंहासन को चारो शोर जी से सहायता करने के लिये इकट्ठे हो जाते हैं।

श्रीमती सहारानी निबन्न राज्यों को जीतने या आसपास की रियासतों को मिला लेने ले हिन्दुस्तान को राज की उन्नति नहीं समझती बरन इस बात में कि इस कोमल और न्याययुक्ता दाजशासन को निरुपद्रव बराबर चलाने में इस देश की प्रजा वाम से चतुराई और बुद्धिमानी के साथ भागी हो । जो हो उन का स्नेह और कर्तव्य केवल अपने ही राज से नहीं है ब- रन श्रीमती शुद्ध चित्त से यह भी इच्छा रखती हैं कि जो राजा लोग इस बड़े राज की सीमा पर हैं और महारानी के प्रताप की छाया में रह कर बहुत दिनों से स्वाधीनता का सुन्छ भोगते आते हैं उन से निष्कपट भाव और मित्रता को दृढ़ रखें। परन्तु यदि इस राज को अमन चैन में किसी प्रकार के बाहरी उपद्रव की शंका होगी तो श्रीमती हिंदुस्तान की राजराजेश्वरी अपने पैटक राज की रक्षा करना खुब जानती हैं। यदि कोई विदेशी शत्र हिन्दुस्तान के इस महाराज पर चढ़ाई करे तो मानो उस ने पूरब के सब राजाओं से शत्रु ता की, और उस दशा में श्रीसती को अपने राज के अपार वल, अपने रही और कर देने वाले राजाओं की बीरता और राजभक्ति और अपनी प्रजा के स्नेह और शुभ चिन्तकता के कारण इस बात को भर- पर शक्ति है कि उसे परास्त करके दंड दें।

इस अवर पर उन पूरब के राजाओं के प्रतिनिधियों का वर्तमान होना जिन्हों ने दूर २ देशों से श्रीमतो को इस शुभ समारम्भ के लिये बधाई दी है, गवरमेनु आव इन्डिया के मेल के अभिप्राय, और त्रास पास के राजाओं के साथ उस के मित्र का स्पष्ट प्रमाण है । मैं चाहता हूं कि श्रीमती की हिन्दु- स्तानो गवरमेन्ट की तरपा स श्रीयुत खानकिलात, और उन राजदुतों को जो इस अवसर पर श्रीमती के स्नेही राजाओं के प्रतिनिधि हो कर दर २ से अंगरेजी राज में पाए हैं, और अपने प्रतिष्ठित पाहुने श्रीयुत गवरनर जनरल गोत्रा, और बाहरी कान्सलों का स्वागत करूं।

हे हिन्दुस्तान के रईस और पूजा लीग,-मैं प्रानन्द के साथ आप लोगों को वह कृपा पूर्वक संदेसा जो श्रीमती सहारानी आप लोगों की राजराजे- ध्वरो ने आज आप लोगों को अपने राजसी और राजेश्वरीय नाम से भेजा है