[ ४ ] भयोध्याकाण्ड - २० वें सर्न को २८ श्लोका में पानी कायी ने राम जी को बन जाते समय आज्ञा दिया कि सुनियों को तरह तुम सी सांस न खाना केवल वांद मून पर अपनी गुज़रान कारना। इस से प्रगट है कि उस समय सुनि लोग सांस नहीं खाते थे। ३० वें सर्ग के २८ लोक में गोलोक का वर्णन है। प्रायः नये विद्वानों का मत है कि गोलोक इत्यादि पुराणों के बनने के समय के पीछे निकाले गए हैं। और इसी से सब पुराणों में इन का वर्णन नहीं मिलता। किंतु इस वर्णन से यह बात बहुत स्पष्ट हो गई कि-गोलोक, का होना हिन्दू लोग उस काल से लानते हैं जब कि रामायण वनी । ३२ वें सर्भ में तैत्तिरीय शाखा और काठकालाप शाखा का नाम है। इस से प्रकट होता है कि वेद उल काल तक बहुत से हिस्सों में बट चुके थे। रामजी को बन जाने की राह इस तरह बयान की गई है। अयोध्या से चल कर तमसा अर्थात् टॉस नदी के पार उतरे। पिार वेद-युति, गोमती, स्यन्दिका • और गंगा पार होते हुए प्रयाग आये । और वहां से चित्र कूट (जोकि रामायण के अनुसार १० दोस है ) ५ गए। यह बिल्कुल सफार उन्होंने पांच दिन में किया । और सुसन्त उनको पहुंचा कर शृजोर र अर्थात् जिंगरामज मे दो दिन में अयोध्या पहुंचा। पहली बात से प्रकट हुगा कि पुराने जमाने के कोल कड़े होते थे । और दूसरी बात से विदित हुआ कि गड़का उस समय में सी बजाई जाती थी नहीं तो इतनी दूर की याला को पांच दिन में ते करना कठिन था।
- यहां सांस से बिना यज्ञ के सांस से मुनाद होगी।
वेद में वह को धाल के वर्णन में लिखा है कि वहां अनेक सींगों की गज हैं। वेदना नाम की एक कोटी नदी गोमती में मिलती है शायद उसी का नास वेदशुति लिया है। जिस को अब सई कहते हैं। यह बड़े सन्देह की बात है अव जो चित्रकूट माना जाता है वह प्रयाग मे तोन चार मंजिल है पर यहां दस कोस लिया है। इस दस कोरा से यह आशय है कि वहां से उस पर्वत को श्रेणी ( लाइन) प्रारम्भ होती है पर जहां डेरा किया था वह स्थान दूर होगा।