पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/७६

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भरतजी जब अपने नाना के पास से जो कि केकय अर्थात् गृहर देश का राजा था आने लगे तो उस ने कई बहुत बड़े और बलवान कुत्ते दिये और तेज दौड़नेवाले गदही (खबर) के रथ पर उनको विदा किया। वे सिन्धु और पंजाब देते हुए इक्षुसती को पार कर अयोध्या आये। इस्से दो बात प्रबाट हुई; एक तो यह कि उस काल में कैकय देश में गदहे और कुत्ते अच्छे होते धे, दूसरे यह कि वहां कि हिंदुस्तान से राह सिन्धु देकर थी। ___७७ वें सन में सूर्तियों का वर्णन है इस्ले दयानन्द सरस्वती इत्यादि का यह कहना कि रामायण में कहीं मूर्ति पूजन का नाम नहीं है अप्रमाण होता है। इसी स्थान में निषाद का लडाई की नौकाओं के तैयार करने का वर्णन है। जिसने यह बात प्रमाणित होती है कि उस काल के लोग स्खल की भांति पानी पर सी लड़ सहीं थे। दक्षिस के लोगों की सिर लें फूल गूंधने की बड़ी प्रसंशा लिखी है। इससे यह बात कलकती है कि उत्तर के देश में फूल गूंधने का विशेष रिवाज नहीं था। १०८ सर्ग में जावालि सुनि ने चार्वाक का मत वर्णन किया है । और फिर १०८ सर्ग में बुध का नाम और उनके सत का वर्णन है। इससे प्रगट है कि ये दोनों वेद के विरुद्ध मत उस समय में भी हिंदुस्तान में फैले हुये थे। अभी हम ऊपर वालकाण्ड में जैनियों के उस काल में रहने का जिक कर चुके हैं तो अब ये सब बातें रामायण के बनने के समय, बुध के जन्म का और बौद्ध और जैन मत अलग होने के समय की विवेचना में कितनी हल्- चल् डालैंगी प्रगट है। आरण्यकाण्ड-चौथे सर्ग को २२ लोक में लिखा है कि असुरों की यह पुरानो चाल हैं कि वे अपने मुर्दे गाडते हैं । इससे प्रकट है कि वेद के विरुद्ध मत माननेवालों में यह रीति सदा से चली आती है । किष्किन्द्राका गड-१३ - सर्ग के १६ श्लोक में कलस अर्थात् जोंधरी के खेत का बयान है, और कोष में “खेलनी का लसि इत्यपि” लिखा है इस बाक्य से प्रगट होता है कि कलम लिखने की चीज का नाम संस्कृत में भी हैं और वह और चीजों के साथ जोंधरी का भी होता था; और इसी से यह भी साफ हो जाता है कि सिवा ताड़ के पत्र वो काग़ज़ पर भी आग के लोग