पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाये एक समय में कुशवंश से कालकेत नासा राजा हुआ और लव वंश में काल राय, इन दो राजात्रों के समय में दोनों वंशों से आपुस में बड़ा विरोध उत्पन्न हुधा कान्द केतु राजा बलवान था उसने सब लववंशी क्षत्रियों को उस प्रान्त से निकाल दिया, राजा काल राय भाग कर सनौड देश में गया और वहां के राजा की बेटी से विवाह किया और उससे जो पुत्र हुआ उस का नाम सोढीराय रक्खा, उस सोढी राय वो वंश के क्षत्री सोढ़ी कहाये कुछ काल बीते जब सोढियों ने कुश वंशवालों को जीता तो कुश वंश के भाग कर काशी में चले पाये और वे लोग यहां रह कर वेद पढ़ने लगे और उन में प्रायः बड़े २ पण्डित हुए, बहुत दिनों पीछे जब सोढियों ने सुना कि हमारे दूसरे भाई लोग काशी में वेद पढ़कर पण्डित हुए हैं तो उनको काशी से बुलाया और वेद सुनकर अपना सब राज्य उन लोगों को दे दिया जिनकी बेद पढ़ने से बेदी संज्ञा होगई थी, काल के बल से इन दोनों वंश के राज्य नष्ट हो गये और वेदियों के पास केवल बीस गांव रह गये और उन्हीं बेदियों को वंश में सखत १५२६ में कालू चोणे के घर बाबा नानक का जन्म हुआ और सोढियों के वंश में गुरु गोविन्द सिंह हुए" गुरु नानक साहब अपने अन्य साहब में जहां चारो वर्गों का नाम लिखते हैं वहां ब्राह्मण खत्री वैश्य शूद्र लिखते हैं। ____ कोई कहते हैं कि बाबर को पहिले को किसी पुस्तक में खत्री का शब्द नहीं मिलता इस्से निश्चय होता है कि बाबर ने जिन क्षत्रियों को अपने सेना से नौकर रखा था उनका नाम खत्री रखा। परंतु कोई कहते हैं कि पञ्जाब मे नाग भाषा का बहुत प्रचार था शौर अब सी पंजाबी भाषा में उनके बहुत शब्द मिलते हैं और क्षत्री खत्री की नाग भाषा है। ऊपर के लेख से हम सिद्ध कर चुके कि खत्री क्ष विय हैं और उस में लोगों के जो अनेक विकल्प हैं वे भी लिखे गए परंतु हम कोई विकल्प नहीं करते क्योंकि नीचे लिखे हुए वाक्य पुराणोपपुराण सारसंग्रह में दशावतार प्रकरण में परशुरास जी के दिग्विजय में मिले हैं जिन से पूनका क्षत्रिय होना स्पष्ट है यथा- यदा श्रीमत्पर शरासो गतो दिजियेच्छया ।।