पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/११९

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(६४) . स्नानादि के बाद दूध पीके रात में सो गये। अगले दिन सभा होगी यही निश्चय हुआ था। किसानों की सभा भी अगले दिन बहुत ही अच्छी हुई। हमने अपने दिल का बुखार निकाल लिया। उन्हें उनके मसले बहुत ही अच्छी तरह समझाये। उनकी आँखों के समक्ष न सिर्फ उनकी हालत की नंगी तसवीर खींची, बल्कि उसके कारण भी साफ साफ बता दिये। उन्हें यह मलका दिया कि उनकी नासमझी और कमजोरी से ही उनकी यह अबतरं हालत है और दूसरे तरीके से यह दूर भी नहीं हो सकती जब तक वे खुद तैयार न होंगे, अपने में हिम्मत न लायेंगे और अपने हकों को न समझेंगे। उनका सबसे पहला हक है कि भर पेट खायें पियें, दवादारू का पूरा इन्तजाम करें, जरूरत भर कपड़े पहनें अोढ़े और स्वास्थ्य के लिये जरूरी सामान तथा मकान वगैरह बनायें । दुनियाँ की काई सरकार और कोई “ताकत इस बात से इनकार कर नहीं सकती अगर ईंट के. वे इस हक का श्रमली तौर से दावा करने लगे। जब वे खुद कमाके अपने आप खाना और अपनों को खिजाना चाहते हैं, और बाकी दुनियाँ को भी, तो फिर किसे हिम्मत है कि वे खुद भूखे रहें और दुनियाँ को खिलायें ऐसा दावा पेरा करे । अाखिर जिस गाय से दूध चाहते हैं उसे पहले खूब खिलाते पिलाते और आराम से रखते ही हैं। नहीं तो दूध के बजाय लात ही देती है। अब किसी प्रकार अररिया चलके रेलगाड़ी पकड़ना और कटिहार पहुँचना था । बरसात के दिन और रास्ते में छोटी बड़ी नदियाँ थीं। फिर वही बैलगाड़ी हमारी मददगार बनी। मगर इस बार दो गाड़ियाँ लाई गई। ऊपर वे छाई भी गई थीं। पहले की गाड़ियाँ तो मामूली ही थीं। मगर इस बार जरा देख भाल के गाड़ी और बैल लाये गये। एक में मैं खुद अपने सामान के साथ बैठा और दूसरी में मा जी और अनाथ बाबू। रात में हो रवाना हुए। नहीं तो अगले दिन कहीं राह में ही रह जाना पड़ता। कित हैरानी और परीशानी के साथ यह बाकी यात्रा पूरी हुई वह वही समक सकता है जिसे उधर ऐसे समय में जाने का मौका मिला हो। इसका यह