पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१२०

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मतलब नहीं कि हममें मनहूसी थी, या हमने इस दिक्कत को अपने दिल में जरा भी स्थान दिया । देते भी क्यों ? हमने खुद जान-बूम के ही यह यात्रा की थी। उन विकट देहातों का अनुभव जो लेना था। हमें खुद इस सख्त इम्तहान में पास जो होना था। और हमें खुशी है कि अच्छी तरह उत्तीर्ण हुए। अररिया में पहुँच के सीधे स्टेशन चले गये। स्टेशन शहर से दूर पड़ता है। वहीं ठहरे, स्नानादि किया, कुछ खाया-पिया । फिर ट्रेन आई और हमें लेके उसने कटिहार पहुँचाया।