पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१२२

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- बनाने लगे हैं। बात तो आसान है। जोई किसान लगान देने आये उससे ही लगान के सिवाय चार आना और ले लेना कोई बड़ी बात नहीं है। चार पाना दिये बिना बाक़ी रुपयो की भी रसीद न मिले तो १ तब तो सभी गायब हो जाते हैं । इसीलिये मजबूरन वे गरीब चार आना देते हो है। नजराना, शुकराना, रसीदाना, फारख या फरखती वगैरह के नाम पर जब बहुत कुछ गैर कानूनी वसूलियौ उनसे की जाती हैं, तो इस चार पाने की क्या गिनती ? खतरा यही है कि जब चवन्नी की ववली जारी हो जायगी तो कुछ दिनों के बाद कांग्रेस के नाम की भी जरूरत न रहेगी और ये पैसे जमींदार हमेशा लेते रहेंगे। अाखिर नये नये अबवाब इसी तरह तो बने है अबवाबों का इतिहास हमें यही सिखाता है। मयर इससे क्या है इसकी पर्वा है किसे ? सुरसंड (मुजफ्फरपुर) के एक जमोदार यों ही अन्नी के नाम पर न जाने कितने दिनों से गैर कानूनी वसूली किसानों से करते आ रहे हैं। हालांकि उनके भाई कांग्रेसी हैं और अब तो जेल भी हो भाये हैं। यह अन्नी भी इसी तरह बनी होगी। हाँ, तो हम स्टेशन पर उतरे और सीधे सभा-स्थान की ओर चल पड़े। हमें ठीक याद नहीं कि बैलगाड़ी पर गये या हाथी पर । शायद बलगाड़ी ही थी। हाथी पर चलना हमें कई कारणों से पसन्द नहीं। पद एक तो धनियों के ही यहाँ होता है। दूसरे वह रोस्टान और शानबान की चीज और सवारी है और किसानों को सभा में यह चीज मुझे बुरी तरह खटकती है। इसीलिये बिना किती मजबूरी के मैं उसे कभी कल नहीं करता । किसानों की अपनी चीज होने के कारण मुन्ने बैलगादी दिल में पसन्द है। कभी कभी पालकी में भी, प्रादमियों के कन्धों पर, चलना ही पढ़ता है। मगर जब कोई चारा नहीं होता और कहा के मानेमाने तथा उनकी पूरी मजदूरी का पका इन्तजाम हो लेता है तभी मैं उस पर बढ़ता है। मैं कहारों से खामखाह पूछ लेता हूँ कि उन्हें जो कुछ मिला उससे ये पूरे सन्तुष्ट है या नहीं। यदि जरा भी फसर मालूम हुई तो उसे पूरा करना। सभी जगद मैंने देखा है कि कहा- फे. साथ बदती लारवादी और चतुरपती