( ६ ) से व्यवहार किया जाता है। इसीलिये मैं उनसे खुद पूछता हूँ। कई जगह तो मारे प्रेम के उनने मुझे अपने कन्धों पर खामखाह चढ़ा लिया है । इस प्रकार जोश-खरोश और उछलते उत्साह के साथ हम लोग सभा- स्थान में पहुँचे । बरसात की कड़ी धूप ने हमें रास्ते में काफी तपाया था और दुपहरी का समय भी था । मेव न होने के कारण सूर्य अपना तेज वैसे ही दिखा रहा था और लोगों को सुनसा रहा जैसे जमींदार किसानों के सम्बन्ध में करता है। पेड़ों की छाया में हमें शान्ति मिलो । ठंडे होके और पानी-वानी पी-पा के हम लोग मीटिंग में पहुँचे । जहाँ मीटिंग थी उसे धर्मपुर का परगना कहते हैं । इसमें पूर्णिया जिले का बहुत बड़ा हिस्सा या जाता है । यहाँ के जमींदार महाराज दरभंगा हैं । कुरसैला के जमींदार और विशुनपुर के जमींदर वगैरह दो एक ही और हैं । मगर महाराजा के सामने इनकी हस्ती नहीं के बराबर है। ये लोग महाराजा की हजारों बीघा रैयती जमीने रखते हैं । खासकर विशुनपुर वाले तो बीसियों हजार बीघे रैयती जमीनें रखते हैं, जो दर रैयतों (undertenants) या शिकमी किसानों को बँटाई पर जोतने को देते हैं। कहीं कहीं नगद लगान भी लेते हैं । मगर जब चाहें जमीन छोन लें इसकी पूरी बन्दिश कर रखते हैं । इस- लिये इस मामले में जमींदारों से भी ये मालदार लोग जो अपने को मौका पड़ने पर किसान भी कह डालते हैं, ज्यादा जालिम और खतरनाक हैं । महाराजा की जमींदारी के और जुल्म तो हुई, जो ग्रामतौर से सभी जमींदारियों में पाये जाते हैं । उनके सिवाय एक खास जुल्म चरसा महाल वाला पहले ही बताया जा चुका है । लेकिन धर्मपुर में ही पता चला कि सर्वे खतियान में जमीन तो किसान की कायमी रैयती लिखी है। फिर भी उस पर जो पेड़ हैं वह सोलहों याने जमींदार के लिखे हैं। असल में पूर्णिया जिले में ज्यां ज्यों उत्तर जाइये नेपाल की तराई की भोर त्यो त्यो मधुमक्खियाँ पेड़ों पर शहद के बड़े बड़े छत्ते लगाती दिखेंगी। वहीं शहद का खामा व्यारार होता है । इमोजिये जनादार ने चालाकी से पेड़ों पर अपना अधिकार सर्वे के समय लिखवा लिया। किसानों को तो उस
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