पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१४४

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- । ( ८८ ) दिन नौगछिया से रवाना होने की तैयारी हुई और कहा गया कि नाव से रातो गत चलना है, तब कहीं जाकर हमें श्रन्दाज लगा कि यात्रा विकट जरूर होगी। शाम का वक्त था । बादल घिरे थे । बूंदा-बांदी भी हो रही थी। पर वही टिप टिप दिए । नौगछिया स्टेशन के पास ही जो नदी की धारा है उसीमें एक नाव तैयार खड़ी थी । वह धारा चालू नहीं बताई जाती है। मगर बरसात में तो विकट रूप उसका होई गया था । नाव पर ऊपर से छावनी भी थी ताकि पानी पड़ने पर करते-लत्ते बचाये जा सः। छोटी-सी डोंगी थी जिस पर ज्यादे से ज्यादे दस-पांच यादमीही चल सकते थे। ज्यादा लोग हो तो शायद हब ही जाय। उस धारा में घड़ियाल वगैरह खतरनाक जानवरों का शहुल्य बताया जाता है। इसीलिये नाव पर भी लोग होशियार होके यात्रा करते हैं। कहीं वह फंस जाय तो सग्वार जलघर धावा ही बोल दे। तिस र तुर्श यह कि रात का समय था। बरसात अलग ही थी । बँदें भी उसके खतरे को और बढ़ा रही थीं। नागेश यह कि सभी सामान इस बात के मौजूद पे कि चलने वाले हिम्मत ही हार जर्जाय। हुया भी ऐसा ही । नागेश्वर सेन ती माय ये नही । वे तो कटया में ही सभा की तैयारी में लगे थे। मगर और जितने साथीच चलने वाले घे एक के अलावे सपने पस्त-दिमती दिखाई। मौत के मुंह में जन- फे कौन जाये। यदि गत में मूसलाधार रिश होगा नारी दूबने की नीयत या गई तो १ सचमुच ही ऐलाभाभी और गले में ने कई बार नाव किनारे लगा फे रोकनी पड़ी। किंतु मामी लोग नो हिमाय लगा रहे थे कि ठेठ परिचालो फेद में ही चला जाना होगा, पर वात सीधे करते न थे। किन्तु दूसरे दूसरे पाने कर रहे थे । माया, मोसिम धुग, न जाने गले में या हो अप, पायात के नामगिमी शायद दी हो सके, यदि हो भी सो जामा सिगान छावटी शाम शादि दलीलें न चलने के सिलसित में जो पोको तीतोसो