पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१४६

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(११) को रह जाता है ? ऐसा करना न सिर्फ गैर जिम्मेदारी का काम है, यतिक किसानों के हितों के साथ खिलवाड़ करना है। ऐमी दशा में तो किसान- आन्दोलन निर्फ दुकानदारी हो जाती है । मगर हमें इस टिकत का सामना करना न पड़ा और अन्त में तय पाया कि खामखाद चलना ही होगा । हमें इससे जितनी ही खुशी हुई वह कौन बतायेगा? नाव चल पड़ी। बाते करते-कराते और गोते-जागते हम लोग उस कोयले से भी कालो रात में नदी की भयंकर धार में नाव लिये नले जा रहे थे। रास्ते में कई बार किनारे लगे यह तो कही चुके हैं। कोई बता नहीं सकता कि दमें कितने मील तय करने पड़े । मगर जब सुबह हुई तो पता चला कि अभी दूर चलना है । दिशा यह थी कि रास्ते में धाराये कई मिली और कौन कदवा जायगी यह तय करने में दिक्ते पेश नाई। तो भी जैसे-तैसे हम ठीक राले से चलते गये। जानवरों का सामना तो कभी हुया नहीं। मगर रास्ते में कई बार ऐसा हुआ कि पानी बिस्कुल ही कम था और हमारी छोटी-मो नार भी जमीन से टकरा जाती थी। फिर नागे बढ़े तो कैसे १ तब हर बार हम लोग उनसे उतर पड़ते जिससे हल्की होके ऊपर उठाती। साथ ही प्रान-मोछे लग फेटेलते जाते भी थे । इस तरह इस यात्रा का मजा हमें मिला। इसे टला-ठाली ने नाव को ठिकाने लगाया। एक दिपात यह भी थी कि रास्ते में गांव तो शायद ही कही मिले। सिर्फ मोमवादि के तेज चारों ओर गये। काकी उनकी रखवाली करने वाले किसान को डाले पड़े। उनी गले का पता हमें जरूरत के वक्त लग जाता था। उनमें भी यह देख के मni यो कादिर केले पागले की हमारी टोली भी गली में मृमन नली जाती पी। वेतो समझने क. उधर तो उन गानों के प्रांत परने वाले लोग ही जानते ही हमें मामले में कोरा! और बालोदी गुजर जारी करने का। उन्हें करा मानन कि हम मनोको र सानेकले हैं।