२० लखनऊ की कांग्रेस के बाद ही सन् १९३६ ई० में बिहार प्रान्तीय वर्किंग कमिटी की मीटिंग थी। मैं भी मौजूद था। लखनऊ में कामेस ने जो प्रस्ताव किसानों की हालत की जांच के लिये पाठ किया था और प्रान्तीय कमिटियों से जाँच की यह रिपोर्ट मांगी थी कि विभिन्न प्रान्तों में किसानों के लिये किन किन सुधारों की जरूरत है जिससे उनकी तकलीफे घटें और उन्हें श्राराम मिले, उसी सम्बन्ध में यह खास मीटिंग हुई थी। उसी मीटिंग में किसान जाँच कमिटी बनानी थी। वह बनाई भी गई। बहुत देर तक विचार और बहस-मुवाहसा होता रहा। समस्या उदरी पेचीदा । इसीलिये कमिटी का काम अासान न था। अन्त में तय पाया कि नौ मेम्बरों की कमिटी बने और जाँच का काम फौरन शुरू कर दे। तभी फैजपुर कांग्रेस के पहले ही दिसम्बर आते आते रिपोर्ट तैयार हो सकेगी। अब सवाल पैदा हुआ कि मेम्बर हों कौन कौन से ? यह तो जरूरी था कि विहार के सभी प्रमुख लीडर जो पकिंग कमिटी में ये उसके मेम्बर बन जाते । हुश्रा भी ऐसा ही । मगर एक दिधात पेश हुई। मैं भी यकिंग कमिटी का सदस्य था। साथ ही, किसानों के सम्बन्ध में मुमाले ज्यादा जानकारी किसी और को थी भी नहीं। जाँच कमिटी में रहके किसानों से ऐसी बातें तो मैं ही पूछ सकता था जिनसे जमींदारों के ऐसे अत्याचारों पर भी प्रकाश पड़ता जो अब तक छिपे थे। कहीं क्या सवाल किया जाय और कर किया जाय इस बात की जानकारी सबसे ज्यादा मुन्नी को थी। इतना ही नहीं। रिपोर्ट तैयार करने के समय में उसे किसानों के पक्ष में प्रभावित कर सकता था। मेरे न रहने पर तो शेष लोग या तो जमोदारों के ही तरफदार होते, या ज्यादे से ज्यादा दो भापिये हो सकते थे। मगर
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