पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१९८

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हजारीबाग जेल में इस बार हमें जो घटनायें मिज़ों वह भी काफी मजेदार हैं । हमें कुछ ऐसे गांधीवादी यहाँ मिले जो हिटलर की जीत से केवल इसलिये खुश होते थे कि वह हिन्दुस्तान पर चला आयेगा और इस प्रकार किसान-सभा और मजदूर-सभा का गला घोंट देगा। सोवियत रूस पर होने वाले उसके अाक्रमण से तो वे लोग और भी ज्यादा खुश थे। वह यहाँ तक बढ़ गये थे कि सोवियत की हार अब हुई, तब हुई ऐसा कहने लगे थे। भारत में हिटलर के पदार्पण से उनकी क्या हालत होगी यह बात भी शायद वह सोचते हों, मगर क्या सोचते थे यह हमने न जाना । किसान आन्दोलन खत्म हो जायगा. उन्हे इसी की खुशी थी। यदि वे खुद भी उसीके साथ खत्म हो जाय तो भी उन्हें पर्वा न थी । फिक उन्हें अगर कोई दिखी तो यही कि किसान-सभा कैसे मिटेगी। बेशक उनमें कुछ लोग तो ऐसे भी थे जो स्वराज्य लेना नहीं चाहते थे, किन्तु उन्हें चिन्ता थी उसके बचाने की । उनके जानते उनका अपना स्वराज्य तो हई । जमीदारी बड़ी है और रुपये पैसे भी काफी जमा हैं । ठाठ-बाट और शान-बान भी पूरी है। किसानों पर रोब भी खूब हाँटते हैं । फिर और स्वराज्य कहते हैं 'किसे उनने तो स्वराज्य का यही मतलब समझा है। उन्हें भय है कि उनका यह स्वराज्य कहीं किसान और पीड़ित लोग छीन न लें, इसीलिये कांग्रेस और गांधी जी की दुम पकड़ के वे इस वला से पार होने के लिये यहाँ पधारे थे। क्योंकि उन्हें विश्वास है कि यहाँ आ जाने पर उनके स्वराज्य की रक्षा गांधी जी और कांग्रेस-दोनों ही-ठीक वैसे ही करेंगे जैसे हिन्दुओं को गाय की दुम उन्हें वैतरणी में डूबने से बचाती है। मगर उनमें जो जमींदार था मालदार न थे उनको इस मनोवृत्ति पर इमें तर्स आया और हंसी भी आई । हिटलर के पदार्पण से उन्हें अपना .