पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२२७

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- > ( १७०) और मजदूर शान्दोलन में खासी दिलचस्पी लेते हैं और जो अच्छे पढ़े- निसे, वहाँ थे। जब दंगा शुरू हो गया तो वे स्वराज्य-भवन में पौरन गये और बोनेतायो से कहने लगे कि भाइये चलें और शहर में घूम के लोगों को समझायें बनाये, उन्हें वंदा करें। चाहे वे ठंडा हो या न हो। नगरमाम लोग कोशिश तो करें। हमारे एक मुसलिम टोलाउन कांग्रेस कमिटी के सभापति थे । इसलिये उन्हें अपना फर्म भी श्रदा करना था। मगर उन नेताओं में एक सबसे बड़े नेता ने, जिनका नाम लेना में उचित नहीं समझता, मगर जो अखिल भारतीय नेता है और गांधी जी फा टोल नाज भी मुल्क में धूम घूम के पोते है, चाट यह कह डाला कि "ऐ, घूमने चलें । यह क्या बात है ? यह नादानी कौन करे । क्या बिगड़े दिमाग लोग हमें पाने पर सोचेंगे कि नेता है ? हमें वहीं खत्म न कर देंगे में तो हर्गिज नहीं जाता। श्रप लोग भी मत जाये।" और फौरन पन्त जी के पास लखनऊ फोन करने लगे कि मिलिटरी भेजे। नहीं तो सैरियत नहीं। हमारे मुलिम जवान साथी को उनकी इस बात पर ताज्जुब हुमा । हैरत भी हुई। मगर वे तो अपना फर्ज अदा करने चली पड़े। भला वे नेता की बात क्यों सुनते। जो कुछ उनसे बन सका धूम- 'घूम के किया भी। हिंन्दु-मुसलिम सभी महल्लों में निडर होके धूमते रहे। पीछे मुलाकात होने पर उनने अहिंसा की ही चर्चा के सिलसिले में यह अजीब दास्तान मुझे सुनाई । वे गांधीवादियों की अहिंसा पर हतते थे। में भी हँसता था। हम किसान-सभा वाले तो गांधी जी के दर में काफी बदनाम है कि कांग्रेस के वसूलों की पाबन्दी नहीं करते । साथ ही, जो नेता साहब और उनके साथी न सिर्फ दुम दया के ऐन मौके पर सटक रहे, बल्कि इथियारबन्द पुलिस और फौज की गोलियों और संगीनों से दंगे को शान्त करने के लिये श्री पन्त जी पर बार बार जोर देते रहे, उन्हें गांधी जी का ऐसा दवामी सर्टिफिकेट अहिंसा के बारे में मिल चुका है कि कुछ पूछिये मत ! अगर ऐसो ही टूटी नाव पर चढ़के न सिर्फ गांधी जी खुद पार होना चाहते हैं, बल्कि सारे मुल्क को भी पार ले जाना चाहते हैं तो उन्हें