( १७२) कि आपके घरवालों के पास बन्दूफ तो हई। उसे ही लेकर चलिये। इस पर साथी ने उत्तर दिया कि बन्दूक लेके चलना तो और भी बुरा है । मैं ऐसा न करूंगा। म पर हार मान के दोनों नेता रवाना हो गये। माथी ने कहा कि मुझे तो मालूम था ही कि उन दोनों के पास एक एक रिवाल्वर था। दोनों रिवाल्वर किसी नवाब साहब के यहाँ से उनने मँगाये थे। मैं उनमें से एक माँगता था। मगर वे लोग एसके लिये तैयार न थे। उनने साफ कह भी दिया कि टोई तो रिवाल्वर और हम दो खुदो जा रहे हैं। फिर आपको कैसे दे। सूत्री यह कि रिवाल्वर लेके जाने पर भी वे लोग विहार शरीफ में घूम न सके। जहाँ कांग्रेसियो का गिरोह था वहीं गये और दल के साथ दी इधर-उधर भाये गये। कितना सुन्दर नमूना गांधी जी की अहिंसा का है। आज तो जगह जगह कांग्रेसी नेता शान्तिदल बना रहे हैं जिसका काम ही है कि हिंसा करने वालों के बीच जाके उन्हें समझाना और शान्त करना। उन्हें न तो इथियार रखना होगा और न जान की पर्वा करनी होगी। इस बात की प्रतिशा शान्तिदल वाले करते हैं। मगर जब उनके नेताओं की यही दशा है तो बाकियों का क्या कहना १ पाकेट में रिवाल्वर लेके शान्तिदल का काम करना अजीब चीज है। फिर भी इस पाखंड को गांधी जी सममें तब न ? यदि में रहता तो जरूर बन्दूक लेके चलता और धीरे से लोगों को इशारा कर देता कि देखिये हमारी अहिंसा।
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