पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२५८

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१६६ ) चालू था । चटपट लोगों को जमा किया। मीटिंग की, और सबों को समझाके चल पड़े। आधी रात को गया में गाड़ी पकड़नी थी। अगले दिन का प्रोग्राम फेल न हो इसीलिये ऐसा करना पड़ा। सवारी उतनी जल्दी काँ मिलती १ पैदल ही चल पड़े। वह मामूली रास्ता नहीं है। केवाल की मिट्टी थी । पानी खुब पड़ा था। रात का वक्त था। ट्रेन पकड़ने की फिक्र. थो । साथ में कुछ लोग थे। यही अच्छा था । एक टट्ट भी साथ कर दिया गया। ताकि थकने पर उस पर चढ़ लू । मेरी तो आदत टट्ट, पर चढ़ने की नहीं। जब एक बार चढ़ा तो थोड़ी देर बाद मारे तकलीफ के उतर पड़ा । एक बजे के करीब जैसे तैसे टेकारी पहुँचा। मोटर खड़ी थी। चढ़के मोटर दौड़ाई। ट्रेन खुलते न खुलते दो बजे के करीब गया पहुँच के गाड़ी पकड़ी और पटना पाया। खुशी इस बात से हुई कि इस परी- शानी ने काम किया और ममियावां के किसानों ने-मदों से ज्यादा औरतों ने लड़के अमावा राज्य को अपनी मांगें स्वीकार करने को मजबूर किया। लाखों रुपये बकाया लगान के छूट गये और उस्ते लगान पर नीलाम जमीन वापिस मिली। मझियावा श्री यदुनन्दन शर्मा की जन्म- otron लेकिन जितनी स्मृतियां अब तक लिपिबद्ध की जा चुकी है, उनसे हमारे आन्दोलन की प्रगति पर काफी प्रकाश पड़ता है और जानने वाली को मालूम हो जाता है कि यह किसान-सभा किस ढग से बनी है। नानाम, बंगाल, पंजाब श्रीर खानदेश अादि की यात्रात्री से इन्हीं पाती पर प्रकाश पड़ता है। उनका वर्णन स्थानान्तर में है भी। इसीलिये यश लिखना आवश्यक समझा नहीं गया है। मिना खास जरूरत के पुनरुक्ति ठीक नहीं । इसीलिये चलते चलाते एक मजेदार श्रीर महत्वपूर्ण घटना का जिक्र करके इसे समाप्त करना चाहता हूँ। वह घटना बहुत पुरानी नदी है। बल्कि यूरोपीय युद्ध छिड़ जाने के बाद की है। अब ना मेरे मार मिल के जिन लोगों ने किसान-सभा और किसान-शन्दोलन से सम्मान की खास तौर से बिहार में और दूसरी जगह भी जिम्मेदारी ली या उसी ।