पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२५९

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( २०० ) मनोवृत्ति पर इस घटना से काफी प्रकाश पड़ता है। किसान-अान्दोलन को भागे ठोक रास्ते पर चलाने वालों के लिये इस बात का जान लेना निहायत ही जरूरी है। नहीं तो वे लोग धोखे में पड़ सकते हैं, गुमराह हो सकते हैं । असल में मुझे खुद इन बातों को समझने में कम से कम आधे दर्जन साल लग गये हैं। तब कहीं इन्हें बखूबी समझ पाया हूँ। इसीलिये दूसरों के सामने इन्हें रख देना मुनासिब समनता हूँ! ताकि उन्हें भी श्राधे या एक दर्जन साल इनकी जानकारी के लिये गुजारने न पड़े। यह पहले ही कह देना चाहता हूँ कि किसी का नाम न लूँगा । मुझे यह बात लाभकारी नहीं जंचती है। जब कांग्रेस की वर्किंग कमेटी ने अपनी अहिंसा का जामा उतार फेंका और गांधी जी को सलाम करके यह फैसला सन् १६४० के मध्य में कर लिया कि यदि अंग्रेजी सरकार भारत में भी राष्ट्रीय सरकार (National Government) बना दे और यह घोषित कर दे कि भारत को पूर्ण अाजादी का हक है तो कांग्रेस इस यूरोपीय लड़ाई की सफलता के लिये मदद करेगी। गोकि प्रस्ताव के शब्द कुछ गोल-मटोल और वकालती थे। फिर भी राष्ट्रपति और दूसरे जिम्मेदार नेताओं के वक्तव्यों से उनका आशय यही निकला। ठीक उस समय जेल में हमारे साथ ही रहने वाले कुछ सोशलिस्ट नेताओं को एक नई पार्टी बनाने की सूझी। इसके लिये उनने लम्बी चौड़ी दलीलें दी और उनके आधार पर एक कार्य-पद्धति भी तैयार की। उनने यह भी साफ साफ स्वीकार किया कि अब कांग्रेस एक प्रकार से खत्म हो गई। अब वह आजादी के लिये नहीं लड़ेगी। वह हमारे काम की अब रह नहीं गई। गो सरकार ने फिल- हाल वर्किंग कमेटी की मांग कबूल नहीं की जिससे वह दफना दी गई है। मगर किसी भी समय वह कब से खोद निकाली जाकर जिलाई जा सकती है। अब कांग्रेसी नेता अंग्रेजी साम्राज्य शाही से गंठ जोड़ा करके उसी के हथियारों से उठती हुई जनता को दबाना चाहते हैं। क्योंकि अब उन्हें इस मुल्क की आम जनता (Masses) से भय होने लगा है। इसलिये