पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२६०

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( २०१ ) उनके साथ संयुक्त मोर्चे का सवाल अब रही नहीं गया। ऐसी हालत में अब हमें क्या करना चाहिये, इसके बारे में उनने अपना निश्चित मत प्रकट किया कि अब हमें किसान-समा को ही किसानों की राजनीतिक संस्था के रूप में संगठित करना होगा। इसी बात पर हमें पूरा जोर देना जरूरी है। साथ ही, मजदूरों के भी संगठन पर काफी जोर देंगे और समय पाके इन दोनों संस्थानों को एक सूत्र में बाँधेंगे। इस तरह जो एक सम्मिलित संस्था बनेगी वही भारत को पूर्ण आजादी के लिये लड़ेगी और उसे लायेगी भी। इसलिये अब हम लोगों की सारी शक्ति उसी ओर लगनी चाहिये। इसीलिये उनने यह भी निश्चय किया कि एकाध को छोड़ बाकी सभी वामपक्षी दलों का भी एक सम्मिलित दल बनना चाहिये । वही दल इस नये कार्य-क्रम को अच्छी तरह पूरा करने में सफल होगा । सब दलों के मिल जाने से हमारी ताकत बढ़ जायगी। उन्हें इस बात का विश्वास भी था कि एक को छोड़ सभी दल मिल जायँगे। उनने अपना यह मन्तव्य मुझसे भी प्रकट किया। मैंने भी उस पर पूरा गौर किया । लेकिन वामपक्षी कमिटी (Left consolidation committee) के इतिहास को देखकर मुझे विश्वास न था कि सबको मिलाके कोई ऐसा एक दल बन सकेगा । वामपक्ष कमिटी का जितना दर्दनाक और कटु अनुभव मुझे है उतना शायद ही किसी को होगा। मैंने उसके सिलसिले में वामपक्षियों की हरकतों से ऊब के कभी कभी शे तक दिया पा। किसी का दिल उसमें लगता न था। मालूम होता था जबदस्ती फैसाचे गये हैं। सभी भागना चाहते थे। यदि एक दल उसमें दिलचस्सी लेता तो और भी दूर भागता था। अजीव हालत थी। पहले तो मुझे उसमें लोगों ने फंसा दिया। मगर पीछे पार्टियों के नेता स्वर-उधर करने लगे। सभी भाग निकलने का मौका देखते थे। भला मा फेमी कोई संयुक्त दल बन सकता है ? जम मुझले उनने राय पूछी, तो मैंने अपना पपा बाल कह गुनाया। । दूसरा