पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२६१

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( २०२ ) मैंने कहा कि वामपक्षी दलों को एक दूसरे पर विश्वास हुई नहीं। और जब तक यह बात न हो मेल मुवाफ़िक़त कैसी? वह तो परस्पर विश्वास के अाधार पर ही बन सकती और टिक सकती है। लेफ्टकंसोलिडेशन की बात मैंने उन्हें याद दिलाई और कहा कि मेरे जानते उसके विपल होने की वजह यही थी उस समय एक दल उसकी जरूरत समझता था तो दूसरा नहीं। अगर दोनों जरूरत समझी तो बाकियों ने नहीं। यही हालत श्राज है। अाज अाप लोग उसकी जरूरत समझते हैं सही । मगर दूसरे नहीं समझते । और जब तक सभी दल इस बात को महसूस न करेंगे कि एक पार्टी सबों को मिलाकर बनाये बिना गुजर नहीं, तब तक कुछ होने जाने का नहीं। तब तक आपकी यह नई पानी नहीं सकती। मैंने यह भी कह दिया कि मैं तो अब किमी पार्टी में शामिल हो नहीं सकता। मैंने तो यही तय कर लिया है कि किमान-मभा के अलावे और किसी पार्टी-वार्टी से नाता न रखू गा । मैं पार्टियों की हरकतें देखके ऊत्र सा गया हूँ। इसलिये मैं पार्टी से अलग ही अच्छा। मिहर्जनों करके मुझे बख्श दें। इसके बाद उस समय तो मुझ पर इसके लिये जोर न दिया गया और दूसरी दूसरी बातें होती रहीं। मगर पीछे जब एक बार कहयों ने मिलाके फिर दवाव डालने की कोशिश की, तो मैंने धीरे से उत्तर दे दिया कि पहले और पार्टियाँ मिल लें तो देखा जायगा। अगर मैं अभी उस नई पार्टी में शामिल हो जाऊँ तो किसान-सभा की मजबूती में बाधा होगी। क्योंकि श्राप लोग पार्टी की ओर से मुझ पर दबाव डालेंगे ही कि जिम्मेदार जगहों पर उसी गर्टी के अादमी किसान-समा में रखे जायें, और पार्टी-मेम्बर की हैसियत से मुझे यह मानना ही पड़ेग । नतीजा यह होगा कि दूसरी पार्टियों के अच्छे से अच्छे कार्यकर्नारों के साथ मैं न्याय न कर सकँगा और वे ऊब के हमारी समा से खामखाह हट जायेंगे। फिर सभा मजबूत हो कैसे मकेगी १ इसलिये मैं इस कमेले में नहीं पड़ता। मगर इस अाखिरी बात के पहले ही कुछ और भी बाते हुई। नई पार्टी के बारे में उनके दो महत्त्वपूर्ण निश्चय थे और वे थे भी कुछ ऐसे कि