पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २०४ ) जिसे ही लीडरी का नशा होगा, जोई देश-सेवा और क्रांति के नाम पर न सिर्फ अपनी पूजा करवाना चाहेगा, बल्कि मौज उड़ाने की फिक्र रखेगा, जोई लम्बी लम्बी बातें हाँक के लोगों को धोखा देना चाहेगा, जिसी के भीतर कोई मजबूती न होगी, किन्तु सिर्फ देखावटी और बाहरी वेश-भूषा ही जिसकी सारी सम्पत्ति होगी ऐसे ही भयंकर और खतरनाक लोग इसमें श्रासानी से या धमकेंगे, यदि उनके आराम का सामान मुहैया हो जाय । मैंने सोचा कि किसानों और मजदूरों की सेवा के नाम पर ये लोग उनके लिये प्लेग बन जायँगे। जो लोग कहीं चोरी डकैती वगैरह की शरण लेते उनके लिये यह बहुत ही सुन्दर पेशा हो जायगा । हाँ, पैसे की आसानी होना जरूरी है। मेरी दलीलों का उन पर कुछ ज्यादा असर होता न दिखा । ऊपर से उनने सर हिलाया जरूर और कबूल किया कि यह दिक्कतें तो हैं । फिर बोले कि अच्छा देखा जायगा । उतने नहीं तो कम लोग ही मेम्बर होंगे। यह कोई जरूरी नहीं कि पचीस ही हजार खामखाइ बनें । मैंने देखा कि मेरे विचारों का उन पर कोई असर न पड़ा। उनने केवल संख्या को ही पकड़ा है। मैं इस प्रकार की मेम्बरी की बुनियाद को ही बुरा और खतरनाक मान कर उनसे बातें करता था। मगर उनने इतना ही माना कि इतनी बड़ी तादाद शायद आसानी से, मिल न सके । उनने यह गलती महसूस ही न की कि मेम्बरी वाला उनका सारा खयाल और रास्ता ही गलत है, घोखे का है। हम दोनों इस मामले में, उतनी बात-चीत के बाद भी दोनों ध्रुवों पर रहे । हम दोनों की नजरें एक दूसरे के खिलाफ थीं। उनका मेल न था । फिर भी मैं उन्हें याद दिलाया कि ऐसे ही कच्चे मेम्बरों को लेके तो श्राप-ही लोग अब तक झगड़ते रहे हैं। ऐसे लोग तो बराबर बे पेंदी के लोटे की तरह, कभी इधर कभी उधर लुढ़कते ही रहते हैं। कभी इस पार्टी में तो कभी उसमें जाते रहते हैं। इसी से झगड़े होते हैं कि दूसरे दल अापके मेम्बरों को फोड़ते हैं। हालाँकि इसमें भूल श्राप ही की है कि कच्चे लोगों को सदस्य बनाते हैं। बाप खुदः रहे बाँस न