पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२६५

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( २०६ ) हद निकाली था और उसी का जिक्र मुझसे भी किया था । मैं सुनता था। साथ ही हँसता भी और घबराता भी। उनके लिये वह क्रांति का चाहे सुगम से भी सुगम मार्ग क्यों न हो, मगर मेरे लिये तो वह बहुत ही खतरनाक दीखा । वैसे पैसे से उनकी नई पार्टी मठ भले ही बन जाय जहाँ मौज उड़ाने वाले ही रहते हैं । मगर मेरे जानते वह किसानों और मजदूरों की पार्टी हर्गिज नहीं बन सकती थी। मैंने उनसे बातें शुरू की। मैंने कहा कि यह भी निराली सी बात है कि श्रापकी पार्टी के लिये पैसे का मुख्य जरिया किसान मजदूर या शोषित जनता हो नहीं, किन्तु कुछ दूसरा ही हो । प्राग्ने मेम्बरों की भर्ती की जो बात बताई है उससे तो स्पष्ट ही है कि केवल मध्यम वर्गीय लोग ही उसमें अायेंगे । किसान मजदूर तो आयेंगे नहीं, शायद ही एकाध श्रायें तो आयें। इस प्रकार जितने नेता होगे वह तो उनमें से आयेंगे नहीं । वह तो बाहरी ही होगे। और पैसे की दिक्कत जब पूरी हो जाती है तब तो खामखाह बाहरी ही लोग रहेंगे ही। इसे कोई रोक नहीं सकता। अब रही पैसे की बात । सो भी उस दुखिया जनता से आने वाला है नहीं जैसा कि आप ही बताते हैं । वह भी तो बाहर से ही आयेगा-बाहरी ही होगा । उसी पैसे से काम का सारा सामान मुहैया किया जायगा-पेपर, लिटरेचर, औफिस वगैरह । इस प्रकार आदमी, पैसा और सामान ये तीनों चीजें बाहर की ही होंगी। किसानों और मजदूरों के भीतर से तीन में एक भी चीज न होगी । हरेक लड़ाई के लिये जरूरी भी यही तीन हैं-श्रादमी, पैसा और समान । और ये तीनों ही बाहर से ही मिल गये। इन्हीं से क्रांतिकारी लड़ाई चलाई जायगी ऐसा आप कहते हैं । चलाई जा सकती है और संभव है उसे सफलता भी मिले और क्रांति भी आ जाय । मगर वह क्रांति किसानों और मजदूरों की होगी यह समझना मेरे लिये गैर मुमकिन है। पह तो उसी की होगी जिसके आदमी, पैसे और सामान से वह आयेंगी। दूसरे के सामान से दूसरे के लिये कोई भी चीज श्राये यह देखा नहीं गया। फिर क्रांति जैसी चीज के बारे में ऐसा सोचना निरी नादानी होगी।