पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/५०

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भारतीय चाहें तो एक साल के भीतर अंग्रेजो सल्तनत को भगाकर अपनी सरकार कायम कर लें। यह अजीब दावा था, अफीमची की पिनक जैसी बात थी। मगर बार-बार कहने पर देश ने इसे सुना और सचमुच.. ही सरकार का श्रासन डिगा दिया। बृटिश सरकार जैसे काँप उठी। सम्राट के पतिनिधि लार्ड रीडिंग ने १९२१ के दिसम्बर में कलकत्ते में कहा कि "मेरी अक्ल हैरान है कि यह क्या हो गया"-- "I am puzzled and parplexed" जो देश पस्त था, सदियों से अंगचित पड़ा था वह एकाएक अंगड़ाई ले के अपने पाँवों पर खड़ा हो गया। उसे अपनी अन्तनिहित अगर शक्ति का एक बार प्रत्यक्ष भान हो उठा। यह कांग्रेस की बड़ी जीत थी कि निहत्थी जनता ने जेलों, जुर्मानों और फाँसी का भय छोड़ दिया । मुल्क की सुप्त अात्मा जग उठी। जो पहलवान साधारण मर्दो से भी भयभीत हो उठता था वही सबसे बड़े मल्ल को पछाड़ कर अपने अपार बन का अनुभव करने लगा।

इसका अनिवार्य परिणाम ऐसा हुआ जिसका किमी को सपने में भी खयाल था नहीं। जब भारतीय किसानों ने वृटिश सिंह को एक बार "धर दबोचा, तो उनने स्वभावतः सोचा कि ये राजे-महाराजे, जमींदार और साहुकार उसी के बनाये तथा उसी की छत्रछाया में पलने पनपने वाले हैं; ये उसके सामने बिल्लो और चुहिया से भी गये. गुजरे हैं । फिर भी इनकी हिम्मत कि हमें लूटते रहें ? "अबलौं नसानी तो अब ना नसैहौं" अनुसार उनने सोचा कि अब तक हम सोये थे और अपनी प्रसुप्त शक्ति को समझते थे नहीं, जिससे इनने हमें. लूटा सताया । मगर अब ऐसा हर्गिज होने न देंगे। जब इनके आकार को हम निहत्थों ने पछाड़ा तो इनको क्या हस्ती १ बस, उस प्रसहयाग अान्दालन के महान् विजय की यहो प्रतिक्रिया मिलान जनता में हुई जो क्रम राः हद होती गई । उसी का फल और व्यावहारिक रूप यह किसान-सभा है। और अगर इमारे लीडर आज इससे घबराते हैं तो वह वेकार है। यह बात उन्हें "पहले ही सोचनी थी जब किसानों को अंग्रेजी सस्तनत के साथ जूमने को