पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/६६

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हैं, कितनी ही मोटरें उलट चुकी हैं और कई मर चुके हैं । था भी रात का वक्त । खतरे की संभावना पद पद-पर थी। बाबू रामदयालु सिंह बात ताड़ गये । उनने ड्राइवर को ऊँवता देख पहले दो-चार बार उसे सँभाला था सही । मगर वह नींद में थोड़े ही था। उस पर नींद की सवारी न होकर नशा की सवारी थी । स्नीसैदपुर में उसने शराब पी ली थी। अब तो वे घबराये। मारे डर के वे पसं.ने पसीने थे। हालाँकि दिसम्बर की कड़ाके की सदों थी । सो भी उस इलाके में तो और भी तेज होती है। वे बार-बार ड्राइवर को सजग करते थे। मगर वह नशा ही क्या कि सर पर न चढ़ जाय · और वेकार न बना दे १ अाखिर उनसे रहा न गया और उनने लौरी जबर्दस्ती रुकवाई । तब कहीं हमें पता चला कि कुछ बेढंगा मामला है। अब तक हम भी वे खबर थे। हम सभी उतर पड़े और उनने कहा कि रास्ते में शराब पीके हम सबों को यह मारना चाहता है । देखिये न, मैं पसीने-पसीने हो रहा हूँ हालाँकि इस कड़ाके के जाड़े में लौरी पर हवा भी लगती है । फलतः काँपना चाहिये। हम सबों की जान पद-पद पर खतरे में देखके मैं थर्रा रहा था। मगर जब देखा कि अब कोई उपाय नहीं है तो रोका है। यदि कोई घटना हो जाती और लौरी उलट जाती या नीचे जा गिरती तो सारी की सारी बिहार प्रान्तीय किसान-सभा ही खत्म हो जाती । हम सभी इसी पर बैठे जो हैं । कल हमारे शत्रुओं के घर घी के चिराग जलते। इसलिये मैं तो इसका नाम-धाम नोट करके जिला मजिस्ट्रेट को इस बात की रिपोर्ट करूँगा। ताकि आइन्दा इस प्रकार की शैतानियत ये ड्राइवर न करें और. नाहक लोगों की जाने जोखिम में न डालें। उनने उसका नाम वाम लिखा सही और वह डर भी गया। इससे हम सभी सकुशल मुजफ्फरपुर स्टेशन पर पहुँच गये । हमने ट्रेन भी पकई ली। न जाने मजिस्ट्रेट के यहाँ रिपोर्ट हुई या नहीं। मगर "समूची किसान-सभा ही खत्म हो जाती" यह बात मुझे भूलती नहीं ! इसकी स्मृति कितनी मधुर है।