कुछ लोगों की धारणा है कि उनने कभी भूल की ही नहीं और न उनके विचारों में विकास हुआ। उनके विचार तो पके पकाये शुरू से ही थे ।.इसीलिये जिनके विचारों का क्रम विकास हुआ है उनकी वे लोग मौके-मौके पर; अपनी जरूरत के मुताबिक, हँसी भी उड़ाया करते हैं । इधर उन्हीं दोस्तों ने यह भी तरीका अख्तियार किया है कि जिस प्रगति- शील कार्य पर उनकी मुहर न हो वह नाकारा और रद्दी है । वह यह भी कहने की हिम्मत करते हैं कि बिहार प्रान्तीय किसान-सभा को बनाया कांग्रेस ने ही । या यों कहिये कि उसके स्थापक कट्टर (Orthodox) कांग्रेसी ही हैं। उनका मतलब उन कांग्रेसियों से है जो गान्धीवादी कहे जाते हैं । यह अावाज अभी-अभी निकलने लगी है। इसके पीछे क्या रहस्य है कौन जाने ?
मगर असल बात तो यही है कि मैं, पण्डित यमुना कापी और बाबू रामदयालु सिह, यही तीन उसकी जड़ में थे-इन्हीं तीन ने उसका विचार किया, कैसे वह शुरू की जाय यह सोचा, सोनपुर के मेले में ही सुन्दर -मौका है ऐसा तय किया, लोगों के पास दौड़-धूप की, नोटिसे छपवाई और बँटवाई और मेले में इसका पूरा प्रायोजन किया । कोई बता नहीं सकता कि इसमें चौथा श्रादमी भी था। यह तो कठोर सत्य है, अडिग बात है । और इन तीनों में रामदयालु बाबू ही एक गान्धीवादी कहे जा सकते हैं । ऐसी हालत में वे बुनियाद बातों की गुंजाइश दी कहाँ है ?
यह ठीक है कि नाम मात्र के लिये प्रमुख कांग्रेसी सभा के साथ थे, या यों कहिये कि उसके मेम्बर थे। मगर यह मेम्बरी तो कोई बाकायदा यी नहीं । किसान-सभा के लक्ष्य पर दस्तखत करके और सदस्य शुल्क देके कितने लोग मेम्बर रहे क्या यह बात कोई बतायेगा। ऐसे मेम्बर बनने के .