पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/८०

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असल में उनके सवयक और निकट सलाहकार कौन हों यही तय नहीं हो सकता था। आखिरश राजा सूर्यपुरा (शाहाबाद) उनके निकट सलाह- कार (मंत्री) बने । भीतरी मतभेद के रहते हुए भा अापस की दलबन्दी जमींदारों के इस महान कार्य में इस महाजाल में बाधक कैसे हो सकती थीं ? इस प्रकार यूनाइटेड पार्टी का जन्म हो गया ।

इस सम्बन्ध की एक और बात है। जब हमारी प्रान्तीय किसान-सभा पहले पहल बनी तो पटने के वकील बा० गुरुसहाय लाल भी उसके एक संयुक्त मंत्री बनाये गये, हालाँकि काम-वाम तो उनने कुछ किया नहीं। असल में तब तक की हालत यह थी कि पुरानी कौंसिल में किसानों के नाम पर जोई दो-चार आँसू बहा देता, दो एक गर्म बातें बोल देता या ज्यादे से ज्यादा किसान-हित की दृष्टि से काश्तकारी कानून में सुधार के लिये एकाध मामूली बिल पेश कर देता, वही किसानों का नेता माना जाता था.। गोया किसान लावारिस माल थे, उनका पुसीहाल कोई न था । इसलिये 'दे खुदा की राह पर के मुताबिक जिसने उनकी अोर अपने स्वार्थ साधन के लिये भी जरा नजर उठाई कि वही उनका मुखिया (spokes man ) माने जाने लगा । प्रायः सत्र के सब ऐसे मुखिया जमींदारों से मिले-जुले ही रहते थे और दो एक गर्म बातें बोल के और भी अपना उल्लू सीधा कर लिया करते थे। ऐसे ही लोगों ने सन् १९२६ ई० में भी एक बिल पेश किया था किसानों के नाम पर टेनेन्सी कानून की तरमीम के लिये, जिसके करते जमींदारों ने.. एक उलटा चिल ठोंक दिया था । फलतः दोनों को ताक पर रखके- सरकार ने अपनी अोर से एक तीसरा बिल पेश किया था और उसीके विरोध को तात्कालिक कारण बनाके प्रान्तीय किसान को जन्म दिया गया था ।

सरकार का हमेशा यही कहना था कि काश्तकारी कानून का संशोधन दोई तरह से हो सकता है या तो किसान और जमींदार या इन दोनों के प्रतिनिधि मिल-जुल के कोई मसविदा (बिल) पेश करें और उसे पास कर लें, या यदि ऐसा न हो सके तो सरकार ही पेश करे और उसे दोनों -