पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/८२

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(२५ ) पर उनका नाम शुरू में एलान किया जायगा तो बड़ा हो-इल्ला मचेगा और मजा किरकिरा हो जायगा । वे भी शायद डरते थे । इसलिये तय यह पाया कि वह पहले एक बिहार प्रान्तीय किसान-सभा खड़ी कर दें। पीछे बिल में जो बातें काश्तकारी के संशोधन के लिये दी जाने वाली हो उन्हें यह कहके अपनी सभा से स्वीकार कराये कि इन्हीं शर्तो पर जमींदारों के साथ किसानों का समझौता हुआ है । इसके बाद तो कानून बना के यह दमामा बजाया ही जायगा कि उनने और झा जी ने किसानों को बड़े-बड़े हक दिलाये। इस तरह यूनाइटेड पार्टी की धाक भी किसानों में जम जायगी। क्योंकि पार्टी की ही तरफ से कानून का संशोधन कराया जायगा । साथ ही गुरुसहाय बाबू भी इसका सेहरा पहने पहनाये उस पार्टी में खुल्लमखुल्ला श्राजाँयगे! 'उनने किया भी ऐसा ही। जिस सभा के एक मंत्री वह भी थे उसके रहते ही एक दूसरी सभा खड़ी कर देने की हिम्मत उनने कर डाली पीछे तो गुलाब बाग (पटना) की मीटिंग में यह भी बात खुली कि इस नकली सभा के बनाने में न सिर्फ जमींदारों का इशारा था, प्रत्युत उनके पैसे भी लगे थे। उस समय इस किसान-द्रोह में उनके साथ एकाध और भी सोशलिस्ट नामधारी जमींदारों के साथ पड्यंत्र कर रहे थे । खूबी तो यह कि यह सारा काम इस खूबी से चुपके चुपके किया जा रहा था कि बाहरी दुनिया इसे समझ न सके । यहाँ तक कि पटने से १५-२० मील पर ही बिहटा में मैं मौजूद था। मगर सारी चीज मुझसे भरपूर छिपाई गई, मुझे खबर देना या मुझसे राय लेना तो दूर रहा । उन्हें असली किसान- सभा का भूत बुरी तरह परीशान जो कर रहा था। वे समझते थे खूब ही, कि यदि इस स्वामी को खबर लग गई तो विरागी होते हुए भी कहीं ऐसा न हो कि उस पुरानी सभा को ही जाग्रत कर दे जिसने जनमते ही सरकार और जमींदारों से भिड़ के एक पछाड़ उन्हें फौरन ही दी थी। तब तो सारी उम्मीदों पर पानी ही फिर जायगा । इसे ही कहते हैं गरीनों की सेवा और किसान-हितैषिता ! खुदा किसानों की हिफाजत ऐसे दोस्तों के करे ।