.. लेकिन आखिर मंडा फूट के ही रहा और ये बेचारे "दुक-दुक दीदम, दम में कसीदम" के अनुसार हाय मार के रह गये। इनकी किसान सभा में विपत्ति का नारा न जाने में क्यों पहुँच गया जिससे इन पर पाला पड़ गया । वहाँ जब मैंने जमींदारों और जमींदार सभा के लीडरों को देखा तो चौंक पड़ा कि यह कैसी किसान-सभा! मगर जब किसानों के नामधारी नेता उन जमींदार लीडरों को इसीलिये सभा में धन्यवाद देना चाहते थे कि उनने पैसे से सहायता की थी, तो बिल्ली थैले से बाहर आगई। आखिर पार छिप न सका और मैंने मन ही मन कहा कि यह तो भयंकर कितान -सभा है। खुशी है कि वहीं उसका श्राद्ध हो गया और पुरानी सभा जाग खड़ी हुई। इस तरह जो मैं अब तक समा ते उदासीन ता या वही अब फिर सारी शक्ति ने उसमें पड़ गया। वे किसान नेता उसके बाद कुली दिनों में अपने असली ल में बागये और जमींदारों से साफ-साज जा मिले। फिर भी किसी की एक न चली और दोई साल के भीतर ऐसा तूफान मचा कि उसमें न तिर्क यूनाइटेड पार्टी उड़ गई, बल्कि जमादारों के मनोरथों पर पानी फिर गया। जो बिल उनने पेश किया उसमें किसान- हित की अनेक बातों को देके और जहरीली बातें उससे निकालके उते कानून का जामा पहनाने के लिये उन्हें मजबूर होना पड़ा । उसी समय से जमींदारों ने अपनी जिरात जमीन के बढ़ाने का पुगना दावा सदा के लिये छोड़ दिया। इस प्रकार अब तक जो अपने को किसानों के नेता कहते थे ऐसे नये पुराने तभी लोगो का पर्दाफाश हो गया और वे मुँह दिखाने के लायक भी नहीं रह गये। लोग इस कमेले. में भयभीत थे कि कहीं में दवा तो अनर्थ होगा। क्योकि अब तक के किसान नेतायों तथा जमींदारों की एक गुटबन्दी किसान-सभा के खिलाफ थी। मगर मुझे तो पूरा विश्वास था कि विजय होगी और वह होके ही रही। साथ ही, चौकन्ना होने की जरूरत भी पड़ो। यह किसान नेताओं का पहला भंडाफोड़ था। अभी न जाने ऐसे कितने ही भंडाफोड़ भविष्य के गर्भ में छिपे थे। (62.11) .
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