५ सन् १६३३ इ० म किसान-सभा के पुनर्जीवन के बाद का समय था और मैं दिन-रात वेचैन था कि कैसे यूनाइटेड पार्टी, उसके छिपे रुस्तम दोस्तों और जमींदारों के नाकों चने चबवाऊँ और उनके द्वारा पेश किये गये काश्तकारी कानून के संशोधन को जहन्नुम पहुँचाऊँ । इसीलिये रात- दिन प्रान्त व्यापी दौरे में लगा था। इसी सिलसिले में दरभंगा जिले के मधुबनी इलाके में भी पहुँचा । खास मधुबनी में हाई इंगलिश स्कूल के मैदान में एक सभा का आयोजन था। किसानों की और शहर वालों की भी अपार भीड़ थी। मैंने खूब ही जम के व्याख्यान दिया जिसमें किसानों के गले पर फिरने वाली महाराजा दरभंगा तथा अन्य जमींदारों की तीखी तलवार का हाल कह सुनाया । देखा कि किसानों का चेहरा खिल उठा, मानों उन्हीं के दिल की बात कोई कह रहा हो । लेकिन किसानों के नेता बन जाने पर भी अभी मुझे उनकी विपदाओं की असलियत का पता था कहाँ ? मैं तो यों ही सुनी सुनाई बातों पर ही. जमीन और प्रासमान एक कर रहा था। वात दर असत यह है कि किसानों और मजदूरों का नेता इतना जल्द कोई बन नहीं सकता । जिसे उनके लिये सचमुच लड़ना और संघर्ष करना है उसे तो सबसे पहले उनमें घूम-घूम के उन्हीं की जवानी उनके दुःख ददों की कहानी सुनना चाहिये । यह बड़ी चीज है । जरा चाव से उनकी दास्तान सुनिये और देखिये कि बार उनके दिलों में घुस जाते हैं या नहीं, उनके साथ बारका गहरा नाता फौरन जुट जाता है या नहीं यही इसका रहस्य है । हाँ, तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब किसानों के मध्य से ही एक चन्दन टीका वाले ने उठके सभा के बाद ही अपनी रामकहानी नुनाई.-- अपनी यानी किसानों की । तब तक मोटा-मोटी समझा जाता था कि ज्यादा-
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