पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तर मजलूम किसान तथा कथित पिछड़ी जातियों के ही होते हैं । कम से कम यह ख्याल तो था ही कि मैथिल ब्राह्मणों का एकछत्र नेता माने जाने वाला महाराजा दरभंगा उन ब्राह्मण किसानों के साथ रियायत तो करता ही होगा-दूसरे किसानों को हाँकने के लिये बनी लाठी से उन्हें भी हाँकता न होगा। नहीं तो सभी मैथिलः उसे नेता क्यों मानते है क्या अपने शोषक और शत्रु को कोई अपना मुखिया मानता है । मगर उस किसान ने कहा कि मैं मैथिल ब्राह्मण हूँ और महाराजा का सताया हूँ। मेरे गाँव या देहात में या यों कहिये कि इस मधुवनी के इलाके में बरसात के दिनों में हमारे नाकों दम हो जाती है, हम अशरण हो जाते हैं । यही हालत महाराजा की सारी जमींदारी की है। हमारे यहाँ पानी बहुत बरसता है, नदी-नाले भी बहुत हैं । फलतः सैलाब (बाढ़) का पदार्पण रह-रह के होता रहता है जिससे हमारी फसलें तो चौपट होती ही हैं, हमारे 'झोपड़े और मकान भी डूब जाते हैं, पानी के करते गिर जाते हैं । पानी -रोकने के लिये जगह-जगह बाँध बने हैं। यदि वे फौरन जगह-जगह काट “दिये जाँय तो चटपट पानी निकल जाय और हम, हमारे घर, हमारे पशु, हमारी खेती सभी बच जाँय । मगर हम ऐसा नहीं कर सकते । महाराजा की सख्त मनाही है। मैंने पूछा, क्यों ? उसने उत्तर दिया कि यदि पानी यह जाय तो मछ. लियाँ कैसे पैदा होंगी? वह जमा हो तो पैदा हो । जितना ही ज्यादा दूर तक पानी रहेगा, सो भी देर तक जमा रहेगा, उतनी ही अधिक मछलियाँ होंगी और उतनी ही ज्यादा आमदनी महाराजा को जल-कर से होगी। सिंघाड़े वगैरह से भी आय होगी ही। यह जल-कर उनका कानूनी हक है । यदि हम लोग न मानें और जान बचाने के लिये पानी काट दें तो हम पर आफत आ जाय । हम सैकड़ों तरह के मुकदमों में फंसा के तबाह कर दिये जाँय । उनके अमलों और नौकरों की गालियों की तो कुछ कहिये मत । -उनकी लाल आँखें तो मानों हमें खाई जायगी। ' उसने और भी कहा कि जब यहाँ सर्वे सेटलमेन्ट हुया तो हम किसानों - .