और उसकी सफलता की कोशिश तो क्या करेंगे, खुद मीटिंग में लाने की हिम्मत न कर सकते थे। इस प्रकार ज्यादा देर होने पर हम घबरायः जनः बार-बार खबर भेजी तो.बड़ी मुश्किल से श्राये। मगर चेहरा फक्क था। सारी.आई-बाई. हजम थी। जब नेताओं की यह हालत थी तो किसानों का क्या कहना ? बड़ी दिक्कत से कुछी लोग श्रासके थे। मगर जमींदार के दलाल औद गुडे हमारी मीटिंग में भी आ गये और शोरगुल मचाना शुरू कर दिया । कभी 'महाराजा बहादुर की जय चिल्लाते, तो कभी मुंह बनाते थे। उनकी खुशकिसमती से हमारी इस मीटिंग के आठ-दस साल पूर्व उस इलाके में और बीहपुर ( भागलपुर ) में भी तथा और भी एकाधं जगह एक हजरत किसान लीडर बन के किसानों को धोखा दे चुके थे। उनका नाम था असल में मुंशी घरभरनप्रसाद । वे निवासी थे सारन जिले के। मगर अपने को प्रसिद्ध किया था उनने स्वामी विद्यानन्द के नाम से । उनने एक तो किसानों को धोखा दे के कौंसिल चुनाव में वोट लिया था। दूसरे उनसे पैसे भी खूब ठगे थे। पीछे तो जमींदारों से भी जगह-जगह उनने काफी रुपये ले के अपना प्रेस मुजफ्फरपुर में चला लिया । फिर लापता हो गये। पीछे सुना, बम्बई चले गये। एक बार जब पटना शहर (गुलाब बाग ) की सभा में उनका दर्शन अकस्मात् मिला था तो सिर पर गुजरातियों की ऊँची टोपी नजर आई थी। हाँ, तो महाराजा के श्रादमियों ने चारों ओर और उस मीटिंग में भी हल्ला किया कि एक स्वामी पहले श्राये तो हमें महाराजा से लड़ाके खुद उनने रुपये ले लिये । अब ये दूसरे स्वामी वैसे ही आये हैं । यह भी हमारी लड़ाई महाराजा से कराके अपना उल्लू सीधा करेंगे और पीछे हम पिस जाँयगे आदि-श्रादि । मुझसे भी वे लोग कुछ इसी तरह के सवाल करते थे। कहते थे कि हम किसान-सभा नहीं चाहते 1 श्राप जाइये, हमें यों ही रहने दीजिये । मीटिंग में जितने श्रोता हाँगे उतने ये गुलगपाड़ा मचाने वाले थे । जब हम बोलने उठते तो वे बहुत ज्यादा शोर मचाते । यह पहला
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