नजारा था जो हमें देखने को मिली । मगर हम भी तो वैते ही हठी निकले । वहाँ से भागने के बजाय जैसे-तैसे मीटिंग करके ही हटना हमने तय किया और यही किया भी। आखिर वे कब तक बोलते रहते हैं इस प्रकार हमने सभा तो कर ली। लेकिन हमें बड़ा कटु अनुभव उन नेताओं के बारे में हुआ जो दिल से किसानों के लिये काम न करते हों, जो उन्हीं के लिये मरने-जीनेवाले न हों। ऐसे लोग मौके पर टिक नहीं सकते और फिसल जाते हैं। इस बात का ताजा नमूना हमें भच्छी में मिल गया। यह ठीक है कि इस मीटिंग के बाद हमने बाबू चतुरानन दास की श्राशा छोड़ दी। ऐसे लोग तो बीच में हो नाव को डुबा देते हैं। यह भी ठीक है कि नमींदार के आदमी भी दंग रह गये हमारी मुस्तैदी देख के। उनके भी जोश में कुछ ठंडक आई। हाला कि उसके बाद मधुवनी इलाके की एक मीटिंग में और भी उनकी कोशिश हुई कि वह न हो सके। मगर पहली बात न रही । बहेरा, मधेपुर के इलाकों में भी कई मीटिंगों में उन लोगों ने बाधायें डाली । मगर हम तो आगे बढ़ते ही गये और वे दबते गये । यह सही है कि भच्छी जैसी हालत हमारी मीटिंगों की और कहीं न हुई। (१०-८-४१) .
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