(४१ ) वे चुपके से क्या बातें करते हैं इसका भी पता वेरावर लगाया जाता है। हमारे पीछे भी उनके गुप्तचर काफी लगे थे। इसलिये हमें सतर्क होकें बहुत ही एकान्त में बातें करने और उनकी हालत जानने की जरूरत हुई। फिर भी गरीब और मजलूम किसान इतने भयभीत थे कि गोया हवा से भी डरते थे। किसी में भी हिम्मत रही नहीं गई है। जरा भी शिकायत की कि न जाने कौन सी भारी बला कब सिर पर ग्रा धमकेगी और चौधरी की जाल: में फंस के मरना होगा, सो भी धुल घुल के। जिन किसानों के झोंपड़े भी उजड़े हैं और जिनसे वृष्टि तथा धूप छन छन के भीतर आती है, जिनके तन पर वस्त्र तक नदारद, जिनने अपनी लज्जा बचाने का काम हजार टुकड़ों से बने चिथड़ों से ले रखा है, जिन्हें अन्न शायद ही छठे छमास मुयस्सर होता हो प्रायः उन्हीं से साल में पूरे अस्सी हजार रुपये की वसूली मामूली बात नहीं है । बालू से तेल और निकालना भी इसकी अपेक्षा आसान बात है । किन किन उपायों और तरीकों से ये रुपये वसूल होते हैं यदि इसका ब्योरा लिखा जाय तो पोथा तैयार हो जायगा । इसलिये नमूने के तौर पर ही कुछ बातें लिखी जाती हैं। उसी इलाके में मुझे पहले पहल पता चला कि पहले चौधरी की जमींदारी में चार चीजों की 'मोनोपली' (monopaly) थी । यानी चार चीजों पर उनका सर्वाधिकार था और उनकी मजों के खिलाफ ये चीजें बिक न सकती थीं । नमक, किरासन तेल, नया चमड़ा और सँगठी मछली यही है वे चार चीजें । इनमें सिर्फ नमक की मोनोपली मेरे जाने के समय उठ चुकी थी। बाकी तीन तो थी ही, जो मेरे आन्दोलन के करते खत्म हुई। अपनी लम्बी जमींदारी के भीतर उनने सबों को यह कह रखा था कि बिना उनकी मर्जी के कोई आदमी नमक, किरासन इन दो चीजों की बिक्री कर नहीं सकता । फलतः किसी को हिम्मत न थी। और जमींदार साहब किन्हीं एक दो मोटे असामियों से दो चार हजार रुपये ले के उन्दी को बेंचने का हक देते थे। नतीजा यह होता था कि वे ठेकेदार ये दोनों ची पत्थर से
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