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पृष्ठ:कुँवर उदयभान चरित.djvu/१५

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कुँवर उदयभान चरित।


थे। मदनवान आगे बढ़के कहने लगी तुम्हें अकेला जान के रानी जी आप आई हैं। कुंवर उदयभान यह सुनके उठ बैठे और यह कहा क्यों न हो। जीको जीसे मिलाप है। कुँवर और रानी दोनों चुपचाप बैठे थे। पर मदनबान दोनोंके बदन गुदगुदा रही थी। होते २ अपने २ पते सवने खोले। रानीका पता यह खिला। राजा जगतपरकासकी बेटी है। और उनकी मा रानी कामलता कहाती हैं। इनको इनके मा बाप ने कह दिया है एक महीने पीछे अमरइयों में जाके झूल आया करो आज वही दिन था जो तुम से मुठभेड़ हो गयी। बहुत महाराजों के कुंवरों की बातें आयी पर किसी पर इनका ध्यान न चढ़ा तुम्हारे धन्य भाग्य जो तुन्हारे पास सब से छुपके मैं जो इनकी लड़कपन की गुइयां हूं मुझे अपने साथ लेके आई हैं। अब तुम अपनी कहानी कहो कि तुम किस देस के कौन हो उन्होंने कहा मेरा बाप राजा सूरजभान और मा रानी लछमीवास हैं। आपुस में जो गठजोड़ा हो जाय तो अनोखी अचरज और अचम्भे की बात नहीं योंही आगे से होती चली आई है। जैसा मुंह वैसा थपेड़ा जोड़ तोड़ टटोल लेते हैं। दोनों महाराजों को यह चित्त चाही बात अच्छी लगेगी। पर हम तुम दोनों के जीका गठजोड़ा चाहिये। इसमें मदनवान बोळ उठी सो तो हुआ अब अपनी २ अंगूठियां हेर फेर करलो और आपुसमें लिखौटी भी लिखदो फिर कछ हिचर मिचर न रहे। कुँवर उदयभान ने अपनी अंगूठी रानी केतकी को पहनादी। और रानी केतकी ने अपना छल्ला कुँवर उदयभानकी उँगलीमें डाल दिया। और एक धीमीसी चुटकी लेली। इसमें मदनबान बोल उठी जो सच पूछो तो इतनी भी बहुत हुई इतना बढ़ चलना अच्छा नहीं मेरे सिर चोट है। अब उठ चलो और इनको सोनेदो और रो पड़े रौनी। बात चीत तो ठीक हो