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कुँवर उदयभान चरित।


आंख मिचौवल खेलने के लिये चाहती हूं जब अपनी सहेलियों के साथ खेलूं और चोर बनूं तो कोई मुझको पकड़ न सके रानी कामलता ने कहा वह खेलने के लिये नहीं है। ऐसे लटके किसी बुरे दिन को सँभाल को डाल रखते हैं क्या जानें कोई घड़ी कैसी है कैसी नहीं। रानी केतकी अपनी मा की इस बात से अपना मुंह ठिठा के उठ गई और दिनभर बिन खाये पीये पड़ी रही। महाराज ने जो बुलाया तो कहा मुझे रुचि नहीं। तब रानी कामलता बोल उठी अजी तुम ने कुछ सुना भी बेटी तुम्हारी आंखमिचौवल खेलने के लिये वह भभूत गुरूजीका दिया हुआ मांगती थी मैंने न दिया और कहा लड़की यह लड़कपन की बातें अच्छी नहीं किसी बुरे दिन के लिये गुरूजी देगये हैं इसी पर मुझसे रूठी है बहुतेरा भुलाती फुसलाती हूं मान्ती नहीं, महाराजने कहा भभूत तो क्या मुझे तो अपना जी भी इससे प्यारा नहीं इस के एक घड़ी भरके बहल जाने पर एक जी तो क्या जो लाख जी हों तो दे डालिये। रानी केतकी को डिबिया में से थोड़ासा भभूत दिया। कई दिन तक आंखमिचौवल अपने मा बाप के साम्हने सहेलियों के साथ खेलती सब को हँसाती रही जो सौ सौ थाल मोतियों के निछावर हुआ किये क्या कहूं एक चुहल थी जो कहिये तो करोरों पोथियों में ज्यों की त्यों न आ सके।

रानी केतकी का चाहत से बेकल हो उभरना
और मदनवान का साथ देने से नहीं करना॥

एक रात रानी केतकी उसी ध्यान में अपने मदनबान से बोल उठी अब मैं निगोड़ी लाज से कट गिरती हूं तू मेरा साथ दे मदन-