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कुँवर उदयभान चरित।


निकलती पर यह बात मेरे पेट में नहीं पच सकती तुम अभी अल्हड़ हो तुम ने कुछ देखा नहीं जो इसी बात पर तुम्हें सचमुच ढलता हो तो देखूंगी तुम्हारे मा बाप से कहकर वह भभूत जो वह मुवा निगोड़ा भूत मछन्दर का पूत अवधूत दे गया है हाथ मरोड़वाकर छिनवा लूंगी। रानी केतकी ने यह रुखाइयां मदनबान की सुनकर हंस के टालदिया और कहा जिसका जी हाथमें न हो उसे ऐसी लाखों सूझती हैं पर कहने और करने से बहुत सा फेर है यह भला कोई अंधेर है जो मा बाप को छोड़ हिरनों के पीछे दौड़ती करछाल मारती फिरूं पर अरी तू बड़ी बावली चिड़िया है जो तूने यह बात ठीकठाक कर जानली और मुझसे लड़ने लगी॥

रानी केतकी का भभूत आंखोंमें लगाकर घर से
बाहर निकल जाना और सब छोटों
बड़ों का तलमलाना।

दस पन्दरह दिनके पीछे एक रात रानी केतकी मदनबान के बिन कहे वह भभूत आंखों में लगाकर घर से बाहर निकल गयी कुछ कहने में नहीं आता जो मा बाप पर हुई सब ने यह बात ठहरा दी गुरूजी ने कुछ समझकर रानी केतकी को अपने पास बुला लिया होगा महाराज जगतपरकास और महारानी कामलता राजपाट सब कुछ इस वियोग में छोड़छाड़ पहाड़ की चोटी पर जा बैठे और किसी को अपने लोगों में से राज थामने के लिये छोड़ गये तब मदनबान ने सब बातें खोलीं रानी केतकी के मा बाप ने यह कहा अरी मदनबान जो तू भी उसके साथ होती तो एकसे दो भली थी अब