पृष्ठ:कुँवर उदयभान चरित.djvu/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८
कुँवर उदयभान चरित।


जो वह तुझे लेजाबे तो कुछ हिचर मिचर न कीजियो उसके साथ हो लीजियो जितना भभूत है तू अपने पास रख हम क्या इस राख को चूल्हे में डालेंगे गुरूजी ने तो दोनों राजों का खोज खो दिया कुँवर उदयभान और उसके मा बाप दोनों अलग हो रहे जगतपरकास और कामलता को यों तलपट किया भभूत न होता तो यह काहेको साम्हने आतीं। निदान मदनवान भी उनके ढूंढने को निकली अंजन लगाये हुए रानी केतकी कहती हुई चली जाती थी बहुत दिनों पीछे कहीं रानी केतकी भी हिरनों की डारों में उदयभान उदयभान चिंघाड़ती हुई आ निकली ज्यों एक को एक ने ताड़कर यों पुकारा अपनी अपनी आंखें धो डालो एक डबरे पर बैठ के दोनों की मुठभेड़ हुई। गले मिलके ऐसी रोईं जो पहाड़ों में कूकसी पड़ गयी॥

दोहा अपनी बोली का।

छागई ठण्डि सांस झाड़ों में। पड़गई कूकसी पहाड़ों में॥

दोनों जनीं एक टीले पर अच्छी सी छांह ताड़ के आ बैठीं अपनी अपनी बातें दोहराने लगीं।

बात चीत मदनवान की रानी केतकी के साथ।

रानी केतकी ने अपनी बीती सब कही और मदनबान वही अगला झींखना झींखा की और उनके मा बाप ने उनके लिये जो जोग साधा था और वियोग लिया था सब कहा जब मदनबान यह सब कुछ कहचुकी तो फिर हँसने लगी रानी केतकी यह दोहा लगी पढ़ने॥