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कुँवर उदयभान चरित।


पुखराजकी दी और एक पारिजात का पौधा जिससे जो फूल मांगिये सोही मिले दुल्हन के साम्हने लगा दिया और एक कामधेनु गायकी पठिया भी उसके नीचे बांधदी और इक्कीस लौंडियां उन्हीं उड़नखटोलेवालियों से चुन के अच्छीसे अच्छी सुथरी गाती बजातियां सीती पिरोतियां सुघड़ से सुघड़ सौंपी और उन्हें कहदिया रानी केतकी छुट उनके दूल्हेसे कुछ बात चीत न रखियो तुम्हारे कान पहिलेही मरोड़े देता हूं नहीं तो सब की सब पत्थर की मूरतें बन जावोगी और गुसाईं महेन्दर गुरु जीने बावन तोले पाउ रत्ती जो सुन्ते हैं उसके इक्कीस मट्के आगे रखके कहा यह भी एक खेल है जब चाहिये बहुतसा तांबा गला के एक इतनी सी इसको छोड़ दीजियेगा कञ्चन हो जायगा और जोगी ने यह सभों से कह दिया जो लोग उनके ब्याह में जागे हैं उनके घरों में चालीस दिन चालीस रात सोनेकी टिड़ियों के रूपमें हुन वरसें और जब तक जियें किसी बात को फिर न तरसें नौ लाख निन्नानवे गायें सोने रूप के सिंगौटियों की जड़ाऊ गहना पहने हुए घूंघुरू झुनझुनातियां बाह्मनों को दान हुईं और सात बरस का पैसा सारे राज को छोड़ दिया बाईस सौ हाथी और छत्तीस सौ ऊंट लदेहुए रुपयोंके लुटा दिये कोई उस भीड़भाड़ में दोनों राज का रहनेवाला ऐसा न रहा जिसको घोड़ा जोड़ा रुपयों का तोड़ा सोने के जड़ाऊ कड़ों की जोड़ी न मिली हो और मदनबान छुट दूल्ह दुल्हन के पास किसी का हियाब न था जो बिन बुलाये चलीजाय बिन बुलाये दौड़ी आई तो वही आयी और हँसावे तो वही हँसाय रानी केतकी के छेड़ने को उनके कुँवर उदयभान को कुँवर कुँवर अजी कहके पुकारती थी और उसी बात को सौ सौ रूप में सँवारती थी॥