(३)
शक्ति देख जिसकी धरणी के धारण करने की अतितर,
यज्ञभाग, भूधरपति पद भी, विधि ने दिया जिसे सुखकर॥
(११)
उसी हिमालय पर्वतपति ने विधिवत अपना किया विवाह,
पितरों की मातसी सुता शुचि मेना से, समेत उत्साह।
जिससे सुत मेनाक नाम का हुआ, पयोधि-मित्र, गुनवान,
नहीं काट जिसके पंखों को सका सुरेश महा बलवान॥
१२
तदनन्तर, शङ्कर की पहली पत्नी सती नामवाली,
दक्षयज्ञ में जल कर जिसने भस्म देह लिज कर डाली।
आई गर्भ-मध्य मेना के रूप-शील-गुण उजियाली,
जिसक जन्मकाल में सारी हुई दिशा शोभाशाली॥
१३
स्थावर जाङ्गम सबको, उसके होने से, सुख हुआ अनन्त,
शोभित हुई उसे निज गोदी में लेकर माता अत्यन्त।
चन्द्रकलावत नित दिन दिन वह बढ़ने लगी रूप की खान,
चढ़ने लगी लुनाई तन में परम रम्य चाँदनी समान॥
१४
नाम पार्वती, पर्वतकन्या होने से, उसने पाया,
'उमा' निषेध-वाक्य माता ने निज मख से जो प्रगटाया।
"मत जा सुता तपस्या करने"—इस प्रकार कह समझाया,
उमा उमा कहने सब लागे, नाम दूसरा छविछाया॥
१५
था यद्यपि सुत, किन्तु पिता की हुई वही बढ़ कर प्यारी,
सच है, आममञ्जरी ही पर प्रीति मधुपगण की भारी।
जैसे ज्योति दीप को, सुरसरि सुरपुर को शोभादायी,
तैसे हुई हिमाचल को वह कन्या उसके घर आई॥